Book Title: Jain Hitechhu 1911 Book 13
Author(s): Vadilal Motilal Shah
Publisher: Vadilal Motilal Shah
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PART
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हूँ
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प्रबल वेगसे सत्यवानके
दरद होगया शोशमें महा, शिर हरेहरे घूमने लगा,
शिथिल इन्द्रियां होगई सभी, सुध रही नहीं देहकी उसे
“अयि प्रिये ! मरा " बोल सोगया. नृपतिकन्यका फक्क होगई, . कर सकी नहीं हा उपाय भी, हृदयनाथका शीश जानुपै
रख, लगी सती सिर्फ दाबने, टकटकी लगा देखती हुई,
लख पड़ी उसे एक छांह सी. दृग उठा लखा, कालदूत था
तब उठा दिया एक हाथ को; रह गया वहीं, आसका नहीं, __ नहिं यही-उसे लौटना पडा.
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