Book Title: Jain Hitechhu 1911 Book 13
Author(s): Vadilal Motilal Shah
Publisher: Vadilal Motilal Shah

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Page 319
________________ RAJASEANILISTINUE तब कहा नृपनेः-“करुणानिधे ! कुछ विचार करें इसका नहीं; . हरि-कृपा-वश पाकर लाभको जन दुखी रहता नहि है कभी. - दुख नहीं स्थिर हो रहता कहीं, .. से नहि कहीं सुख भी रहता सदा नियम ही यह है इस विश्वका, ___ सब समान नहीं दिन बीतते. नियतिचक्र रहे यह घूमता, ठहरता नहि एकहि ौर है; सुजन, सज्जन की शुभ-दृष्टिमें ___इसलिये न अमान्य बने कभी. कर कृपा कहिये मत 'ना' मुझे । सफल ही करिये मम प्रार्थना; 5 यह मता मम आत्मजकी वधून बन चुकी, मनसे यह मानिये." SARSA

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