Book Title: Jain Hitechhu 1911 Book 13
Author(s): Vadilal Motilal Shah
Publisher: Vadilal Motilal Shah

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Page 317
________________ वह चिरायुष हो अथवा नहीं, वर वही मम है. दुसरा नहीं, जगतमें जितने जन और हैं जनक, सादर, आ. मज हैं सभी: जनक होकर कर्म बता रहे, अह मुझे असतीजनशोभित ? हृदयसे तक सत्य पतिव्रता न करती व्यभिचार कभी कहीं. इस प्रकार सुता - हट देखके, पड गया नृप सोचसमुद्र में; प्रबल, भूपति ! है भवितव्यता, कर विवाह " मुनिश गये कह. " महिने बहु नीति - कथा कही, पर सुता प्रणसे पलटी नहीं, तब उसे गह ले परिवारको, नृप नृपाल - तपोवन को गया. १३. 99

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