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वह चिरायुष हो अथवा नहीं, वर वही मम है. दुसरा नहीं, जगतमें जितने जन और हैं जनक, सादर, आ. मज हैं सभी:
जनक होकर कर्म बता रहे, अह मुझे असतीजनशोभित ? हृदयसे तक सत्य पतिव्रता
न करती व्यभिचार कभी कहीं.
इस प्रकार सुता - हट देखके, पड गया नृप सोचसमुद्र में; प्रबल, भूपति ! है भवितव्यता, कर विवाह " मुनिश गये कह.
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महिने बहु नीति - कथा कही, पर सुता प्रणसे पलटी नहीं,
तब उसे गह ले परिवारको, नृप नृपाल - तपोवन को गया.
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