Book Title: Jain Hitechhu 1911 Book 13
Author(s): Vadilal Motilal Shah
Publisher: Vadilal Motilal Shah

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Page 316
________________ . .- - ..--. .-.. - .rn. o rn AVAdhaar .rno -oto J सुन गिरा मुनिकी महिपालके हृदय बीच विषाद हुआ महा; इस प्रकार भविष्यत जानके ___ न किसके मनमें दुख हो कहो ? नृपतिने धर धीरज यों कहाः ___ “अयि कुमारि ! यहां मम पास आ कर पसन्द सुते ! वर अन्यको ___ सगुण, सौम्य, चिरायुष, धन्यको." नृपसुता तब यों कहने लगीः __ "वर चुकी जिसको वरही चुकी: अब मुझे वर अन्य न चाहिए. न प्रभुको कहना यह योग्य है. सुकुलमें जिनका शुभ जन्म है, ___ अटल नीति सदा उनकी यही • कि जिसके करमें मनको दिया . बस दिया उसको ध्रुव तुल्य है। ositoriors. omiduadboorton.kisouvosdorsesJourtases. .. ... . . . A a OCTOR APK. "

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