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सत्यमार्गपर चलनेवाली,
रहनेवाली सदाचारसे, एक दिवस यह नित्य-कृत्य कर
नृपके समीप जाके बैठी. थे यद्यपि बहु राजकुमार, __अच्छे, पढेलिखे, जग भीतर; इसके वर होनेके लायक,
सबगुणनायक पर, वे नहिं थे. नहीं तेजके सन्मुख इसके . हो सकताथा मुख भी उंचा; फिर किसका झना साहस था
जो खुद मंगनी करता इसकी ? ऐसा देखा जब भूपतिने,
तेजोनिधि जैसी तनयाको-- पास बुलाकर, कहा प्रेमसेः
“देखो वर जाकर बेटी, ! वर"
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