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निराकार हरि रूप है, प्रेम प्रीत से सेव जो मागे आकारको, तो संतो प्रत्यक्ष देव. संत वृक्ष हरि नाम फल, सतगुरु शब्द विचार; ऐसे हरिजन ना हते, तो जल मरते संसार.
प्रिय वाचक ! वेठ कहाडवा बेटा हो अवी रीते वांचशो नहि, कबीरजीनां क्रोड क्रोड रुपीआनी किमतनां कथन कान दइने सूणजो.
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(८) हरि एटले परमात्मा तो निराकार छे; एने कांइ पुष्पादिथी पूजी शकाय नहि. एनी सेवा तो प्रेमरुपी प्रीतिथी ज थाय. एटले के अंतःकरणमा एना उपर प्रेम आश्वाथी ज एनी सेवा थइ गई. परन्तु जो कोइ माणसथी 'निराकार'नी सेवा न बनी शके तेम होय अने 'साकार'नी सेवानी जरुर होय तो निराकार एवा जे परमात्मा रहेनुं आकारवाळु स्वरुप एज 'साधु पुरुष' छे एम मानी साधुनी सेवा करवा दो. कारण के 'साधु' मां 'परमात्मा' ना गुणोनी बानगी है.
(९) अहीं कबीरजी स्पष्ट खुलासा करे छे के, संत रूपी वृक्ष छे, हेनुं ' हरिनाम 'ए फळ छे. सद्गुरुनो शब्द एज परमात्मानों शब्द छे. आवुं वृक्ष जो आ दुनियामां न होत तो संसार तापथी बळी मरत. वृक्ष एने शीतळता आपे छे.