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माये हैं। डॉ० आदित्य द्वारा हिन्दी जन पूजा साहित्य का जो नये आयामों के बाधार पर विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत किया गया है इसके लिए वे बधाई के पात्र हैं। पूजा साहित्य के प्रति अब तक जो नाम पाठक की धारणा रही है उनसे भिन्न हटकर डॉ० आदित्य ने उसे नए परिधानों से अलंकृत किया है । उनका यह अध्ययन स्तुत्य एवं प्रशंसनीय है तथा हिन्दी जगत में इसका surve स्वागत होगा, ऐसी मेरी मंगलकामना है ।
१ अप्रैल, १९८६
४६७, अमृतकलश, बरकतनगर
किसान मार्ग, टोंक फाटक
जयपुर (राज0)
डॉ०
० कस्तूरचन्द कासलीवाल