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[ १५ ]. 'अध्याय ४ : प्रथम शताब्दी से सातवीं शताब्दी तक की १६०-१६३
जैम साध्वियों एवं विदुषी महिलाएँ
कुमारदेवी १६०, श्राविका श्यामाढ्य १६१ । अध्याय ५ : दक्षिण भारत को जैन साध्वियां व विदुषी १६४-१८१
महिलाएँ वासुकी १६५, औवे १६६, गंगमहादेवी १६७, काललदेवी १६७, अजितादेवी १६७, पल्लविया १६८, कुन्दाच्चि ( कदाच्छिका ) १६८, सवियब्बे १६८, चन्द्रवल्लभा १६९, जक्किसुन्दरी १६९, माललदेवी १७०, अतिमब्बे १७०, जाकलदेवी १७२, कालियक्का १७३, अक्कादेवी १७३, केतलदेवो १७४, शान्तलदेवी १७४, माचिकब्बे १७५, हरियब्बरसि १७६, लक्ष्मीमति १७६, पोचिकब्बे १७७, आचियक्क या आचलदेवी १७८, हयुर्वले १७८, सोबलदेवी १७९, चागलदेवी १७९, पम्पादेवो १७९,
कंतोदेवी १८०, भीमादेवी १८०, श्रीमती १८१ । अध्याय ६ : आठवीं शताब्दी से पन्द्रहवीं शताब्दी तक को १८२-१९७
जैन साध्वियाँ एवं विदुषी महिलाएँ याकिनी-महत्तरा १८२, धनपाल की प्रतिभाशालिनी पुत्री १८४, सुन्दरी १८५, गुणासाध्वी १८५, श्रीमतो १८७, पाहिनी १८८, हेमचन्द्र का जन्म व बाल्यकाल १८९, काश्मीरी १९१, भोपाला १९२. मीनलदेवी १९३, आनन्द महत्तरा एवं वीरमति गणिनी १९३, शान्तिमति गणिनी १९४, अनुपमा १९४, नीतादेवी १९५, अञ्चलगच्छ की प्रमुख साध्वियाँ : सोमाई १९५, साध्वी गुणश्री १९६, खरतरगच्छ का साध्वी एवं श्राविका संघ : कल्याणमति गणि १९६, मरुदेवी महत्तरा १९६, महत्तरा हेमदेवी १९७, तपागच्छ का आविर्भाव १९७, लोकाशाह की धर्म-क्रान्ति का तत्कालीन महिलाओं पर प्रभाव १९७।
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