Book Title: Jain Dharm Darshan Part 06
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 20
________________ 9. आर्यमहागिरि व आर्यसुहस्ती - ये दोनों श्री स्थूलभद्रजी के दशपूर्वी शिष्य थे। आर्य महागिरि ने गच्छ में रहकर जिनकल्प की तुलना की थी। अत्यन्त कठोर चारित्र पालते थे। अंत में मालव प्रदेश के गजपद तीर्थ में अनशन कर स्वर्गवासी बने। आर्य सुहस्ति सूरि सम्राट संप्रति के प्रतिबोधक थे। उन्होंने अविस्मरणीय शासन प्रभावना की। वे भी भव्य जीवों को प्रतिबोधन कर अंत में अवन्ति तीर्थ में स्वर्गवासी बने। 10. आचार्य वज्रस्वामी - व्रजस्वामी तुंबवन गाँव के धनगिरि व सुनंदा के पुत्र थे। पिता ने जन्मपूर्व ही दीक्षा ली यह ज्ञात होते ही सतत रूदन करके माता का मोह तुडवाया। माता ने उसे धनगिरि मुनि को बहोराया। साध्वीजी के उपाश्रय में पालने में झुलते-झुलते ग्यारह अंग कंठस्थ किये। माता ने बालक वापस लेने हेतु राजसभा में आवेदन किया। संघ समक्ष गुरू के हाथों से रजोहरण लेकर नाचकर दीक्षा ली। राजा ने बालक की इच्छानुसार न्याय दिया। संयम से प्रसन्न बने हए मित्र देवों द्वारा आकाशगामिनी विद्या व वैक्रिय लब्धि प्राप्त की। भयंकर अकाल के समय में सकल संघ को आकाशगामी पट द्वारा सुकाल क्षेत्र में लाकर रख दिया। बौद्ध राजा को प्रतिबोधित करने हेतु अन्य क्षेत्रों से पुष्प लाकर शासन प्रभावना की। अंतिम दश पूर्वधर बनकर अनशन करके कालधर्म प्राप्त किया व इन्द्रों ने उनका महोत्सव मनाया। वज्रस्वामी के स्वर्गगामी होने के बाद दसवां पूर्व और चौथा अर्धनाराच संघयण का विच्छेद हुआ। waifraueatuturburlinesiaticoliye tsongs

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