Book Title: Jain Dharm Darshan Part 06
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 64
________________ S (1) सामायिक 3. सामायिक प्रतिमा पूर्व प्रतिमाओं की साधना के सहित गृहस्थ साधक को प्रतिदिन नियमित रूप से दोनों समय अप्रमत्तरूप से 32 दोषों से रहित शुद्ध सामायिक की साधना करनी होती है। इसकी अवधि तीन मास है। 4. पौषध प्रतिमा :- पूर्वप्रतिमाओं के अनुष्ठान सहित निरतिचार रूप से 4 महीने २००००६ तक प्रत्येक मास के दो अष्टमी, दो चतुर्दशी, अमावस्या और पूर्णिमा इन दिनों में श्रावक का गुरू के समीप या धर्म स्थान में उपवास सहित पौषध लेकर आत्मसाधना में रत रहना, श्रावक की पौषध प्रतिमा है। भोजन त्याग आभूषण / घन व्यापार त्याग 5. नियम प्रतिमा :- इसे कायोत्सर्ग प्रतिमा एवं दिवामैथुन विरत - प्रतिमा भी कहा जाता है। इसमें कायोत्सर्ग पूर्वोक्त प्रतिमाओं का निर्दोष पालन करते हुए पांच विशेष नियम लिए जाते हैं 1. स्नान नहीं करना, 2. रात्रि भोजन नहीं करना, 3. धोती की एक लांग नहीं लगाना, 4. दिन में ब्रह्मचर्य का पालन करना तथा 5. रात्रि में मैथुन की मर्यादा निश्चित करना । प्रत्येक चर्तुदशी के दिन पौषध की सारी रात्रि कायोत्सर्ग अवस्था में व्यतीत करना । वस्तुतः इस प्रतिमा में कामासक्ति, भोगासक्ति अथवा देहासक्ति कम करने का प्रयास किया जाता है। इसकी अवधि पांच मास की है। 250 P रात्रि भोजन 6. ब्रह्मचर्य प्रतिमा इस प्रतिमा में पूर्णतया ब्रह्मचर्य का पालन किया जाता है। शेष सब आचार विधि पाँचवी प्रतिमा के समान है। इसकी अवधि छह मास की है। इस प्रतिमा में साधक ब्रह्मचर्य की ब्रह्मचर्य पालन (३) पौषध शस्त्र त्याग ब्रह्मचर्य पालन

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