Book Title: Jain Dharm Darshan Part 06
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 72
________________ ससप्प पाससप्पन आदि सुखों की कामना करना। 3. जीवित-आशंसा-प्रयोग :- जीवन जीने की आकांक्षा करना-जैसे कीर्ति आदि अन्य कारणों के वशीभूत होकर सुखी अवस्था में अधिक जीने की इच्छा करना। 4. मरण-आशंसा-प्रयोग :- मृत्यु की आकांक्षा करना। जैसे-जीवन में शारीरिक प्रतिकूलता में, भूख-प्यास या अन्य दुख आने पर मृत्यु की इच्छा करना आदि। 5. काम-भोग-आशंसा-प्रयोग :- इन्द्रियजन्य विषयों के भोगो की आकांक्षा करना। मरणार मोगाससफ काममा समाधिमरण ग्रहण करने की विधि - शास्त्रों में समाधिमरण ग्रहण करने की विधि निम्नानुसार बताई गई है - सर्वप्रथम मलमूत्रादि अशुचि विसर्जन के स्थान का अवलोकन कर संथारा या नरम तृणों की शैय्या तैयार कर ली जाती है। तत्पश्चात् अरिहंत, सिद्ध और धर्माचार्यों को विनयपूर्वक वंदन कर पूर्वगृहीत प्रतिज्ञाओं में लगे हुए दोषों की आलोचना कर उनका प्रायश्चित ग्रहण किया जाता है। इसके बाद समस्त प्राणियों से क्षमा याचना की जाती है और अन्त में साधक प्रतिज्ञा करता है कि मैं पूर्णत: हिंसा, झूठ, चोरी, मैथुन, परिग्रह, क्रोध, मान, माया लोभ यावत् मिथ्यात्व शल्य रूप अठारह पापस्थानों से विरत होता हूँ। यावज्जीवन के लिए चारों प्रकार के आहार का त्याग एवं शरीर के ममत्व एवं पोषण क्रिया का विसर्जन करता हूँ। मेरा यह शरीर जो मझे अत्यन्त प्रिय था, मैंने इसकी बहत रक्षा की थी, कृपण के धन के समान इसे सम्भालता रहा था, इस पर मेरा पूर्ण विश्वास था (कि यह मुझे कभी नहीं छोड़ेगा) इसके समान मुझे अन्य कोई प्रिय नहीं था। इसलिए मैंने इसे शीत, गर्मी, क्षुधा, तृष्णा आदि अनेक कष्टों से एवं विविध रोगों से बचाया और सावधानीपूर्वक इसकी रक्षा करता रहा | अब मैं इस शरीर का विसर्जन करता हूँ और इसके पोषण एवं रक्षण के प्रयासों का परित्याग भी करता हूँ। वर्तमान में अंत समय में रानी पद्मावती आराधना, पुण्य प्रकाश का स्तवन आदि सुनाए जाते AAAAAhA4 58

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