Book Title: Jain Dharm Darshan Part 06
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 102
________________ com बोधागाध सुपदपदवीपीरपुराभिराम , जीवाहिसा-विरल-लहरी नगमागाहदेहम् । चूलावेल गुरुग्राममणि-संकुल दूरपार चार वीरागमजलनिधि सादर साधु सेवे ।। पसdel દ્રષ્ટિવાદ जयंती पथा मैं अत्यन्त श्रद्धापूर्वक नमन करता हूँ ||2|| (आगम स्तुति) इस श्लोक के द्वारा समुद्र के साथ समानता दिखाकर आगम की स्तुति की गई है। श्री महावीर स्वामी के श्रेष्ठ आगम रूपी समुद्र का मैं आदरपूर्वक अच्छी तरह से सेवन करता हूँ। जैसे समुद्र में अगाध जल होता है वैसे इस आगम रूपी समुद्र में अगाध ज्ञान रहा हुआ है, तथा यह आगम समुद्र श्रेष्ठ शब्दों के रचना रूपी जल के समूह द्वारा मनोहर दीख पड़ता है, लगातार बड़ी-बड़ी तरंगों के उठते रहने से जैसे समुद्र में प्रवेश करना कठिन है वैसे ही यह आगम समुद्र भी जीवदया के सूक्ष्म विचारों से परिपूर्ण होने के कारण इस में भी प्रवेश करना अति कठिन है, जैसे समुद्र के बड़े-बड़े तट होते हैं वैसे ही आगम में भी बड़ी-बड़ी चूलिकाएँ हैं, जैसे समुद्र मोती, मूंगों, आदि से भरपूर है उस प्रकार आगम में भी बड़े-बड़े उत्तम-गम-आलावे (सदृश पाठ) हैं, तथा जिस प्रकार समुद्र का पार किनारा बहुत ही दूरवर्ती होता है वैसे ही आगम का भी पार पाना अर्थात् पूर्ण रीति से मर्म समझना (अत्यन्त मुश्किल) है ||3|| हे श्रुतदेवी ! मुझे सर्वोत्तम मोक्ष का वरदान दो अर्थात् मैं संसार से पार उतरूं ऐसा वरदान दो | इस श्लोक में श्रुत देवी के पाँच विशेषण दिये हैं, वे इस प्रकार है उस श्रुत देवी का निवास कमल पर रहे हए भवन में है, वह कमल जल की तरंगों से मूल पर्यन्त चपल-हिलोरे खा रहा है, और उसके मकरन्द की अत्यंत सुगन्ध पर मस्त हो रहे चंचल भंवरों के समूह की गुंजारव शब्दों से वह कमल शोभायमान हो रहा है तथा उस कमल के पत्ते अत्यंत स्वच्छ है | ऐसे कमल पर उस श्रुतदेवी का भवन है । एवं वह देवी कांति के समूह से सुशोभित है, उसके हाथ में श्रेष्ठ कमल है, देदीप्यमान हार से वह मनोहर दिखलाई दे रही है और उसका शरीर द्वादशांगी के समूह रूप है अर्थात् द्वादशांगी की अधिष्टात्री है। CELL. KORRAGDOEDIGERALD Kapooo Oooooox Q8 ... Haritadiuarticlinintendutorial e sodo private Use Only www.jainelibrary.org

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