Book Title: Jain Dharm Darshan Part 06
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 101
________________ तानि - उन। धूली-बहुल-परिमला - रज-पराग से भरी हुई बोधागाधं - ज्ञान से आगाध-गंभीर। सुगन्धी में। सुपद-पदवी-नीर-पूराभिरामं - सुन्दर पदों आलीढ - मग्न बने हुए। की रचना रूप जल प्रवाह से मनोहर। लोला-अलिमाला - चपल भंवरों की श्रेणियों की। जीवाहिंसाविरल-लहरी-संगमागाह-देहं - झंकार-आराव - झंकार शब्द से। जीवदया रूप अन्तररहित तरंगों के संगम सार - श्रेष्ठ। द्वारा अगाध है शरीर जिसका। मल-दल-कमल - निर्मल स्वच्छ पत्तों चूला-वेलं - चूलिका रूप तटवाले वाले कमल। गुरु-गम-मणी-संकुलं - बड़े-बड़े आलापक आगार-भूमि-निवासे - गृह की भूमि में निवास रूपी रत्नों से भरपूर। करने वाली। दूर-पारं - जिसका संपूर्ण पार पाना अति छाया-संभार-सारे - कांति पुञ्ज से कठीन है। शोभायमान। सारं - उत्तम, सर्व श्रेष्ठ। वर-कमल-करे - हाथ में उत्तम कमल को वीरागम-जलनिधिं - श्री महावीर प्रभु के । धारण करने वाली। आगम रूपी समुद्र की। तार-हाराभिरामे - देदीप्यमान हार से सुशोभित। सादरं - आदर पूर्वक। वाणी-संदोह-देहे - बारह अंग रूप वाणी साधु - अच्छी तरह। ही जिसका शरीर है। सेवे - मैं उपासना करता हूँ, सेवा करता हूँ। भव-विरह-वरं - मोक्ष का वरदान आमूलालोल - मूल तक कुछ डोलने से गिरी देवि - हे श्रुत देवी। देहि मे सारं - मुझे श्रेष्ठ हो। संसार-दावानल नमGOSAR समोल्यूलीहरणे समीरम् । नावारमा दारण सारसीर भावार्थ : ( श्री महावीर प्रभु की स्तुति) श्री महावीर स्वामी जो संसार रूपी दावानल के ताप को शांत करने में जल के समान हैं, महामोहनीय कर्म रूपी धूली को उड़ाने में वायु समान है, माया रूपी पृथ्वी को खोदने में तीक्ष्ण हल के समान हैं और मेरु पर्वत के समान धीर (दृढ़ स्थिरता वाले) हैं, उनको मैं नमस्कार करता हूँ ||1|| साम्योदया लाहब भावागनाम-सुरदानव-मानवेन-धूलादिलोलकमलालिमालितानि।A रिताऽभिनतलोकसमीहितानि काम नमामि जिनराजपदानि तानि ।। ARRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRR asanapraacanciatine (सकल जिनेश्वरों की स्तुति) भक्ति पूर्वक नमन करने वाले सुरेन्द्रों, दान और नरेन्द्रों के मुकटों में विद्यमान देदीप्यमान-विकस्वर कमलों की मालाओं द्वारा पूजित तथा शोभायमान एवं भक्त लोगों के मनोवांछित अच्छी तरह पूर्ण करने वाले ऐसे सुन्दर और प्रभावशाली जिनेश्वर देवों के चरणों को 0000000000 AnSPrivat

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