Book Title: Jain Dharm Darshan Part 06
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 115
________________ मौन एकादशी पर्व का अर्थ है, कुछ विशेष दिन । पर्व पवित्रता और श्रेष्ठता का भी सूचक है। जैन ज्योतिष के अनुसार प्रत्येक पक्ष की निम्न तिथियाँ पर्व तिथि कहलाती हैं। द्वितीया, पंचमी, अष्टमी, एकादशी तथा चतुर्दशी एवं पूर्णिमा । प्रज्ञापना सूत्र में बताया है - द्रव्य, क्षेत्र, काल आदि का प्रभाव भी कर्मों के उदय व क्षयोपशम भाव में उनके तीव्र-मंद प्रभाव में निमित्त बनता है। किसी समय में प्रारम्भ की गई ज्ञानाराधना तथा अमुक नक्षत्र आदि में ध्यान-साधना विशेष शीघ्र फलदायी होती है। वैसे ही अमुक तिथि को किया गया अमुक कार्य शीघ्र फलदायी होता है । तिथियों का सम्बन्ध ज्योतिष शास्त्र से है। मुख्य बात यह है कि इन तिथियों में विशेष धर्मध्यान, तप, त्याग करके शुभ भावना पूर्वक समय को सार्थक बना दें जिससे जीव आयुष्य शुभ गति का बंध कर सके। दो दिन के अन्तर से एक दिन पर्व तिथियों में उपवास, आयंबिल एकासना आदि करके धार्मिक संस्कारों को जीवन्त रखा जाता है। इन्हीं पर्व-तिथियों में मौन एकादशी एक विशेष पर्व है। मिगसर सुदि 11 का दिन मौन एकादशी के नाम से प्रसिद्ध है। जिस तरह सर्व पर्वो में पर्युषण पर्व विशिष्ट कहलाता है, उसी तरह समस्त दिनों के अन्दर मौन एकादशी का दिन मुख्य है। मिगसर दि ग्यारस के दिन 18वें तीर्थंकर अरनाथ भगवान ने चक्रवर्ती सम्राट का अपार वैभव त्यागकर दीक्षा ग्रहण कर थी। 19वें तीर्थंकर मल्लीनाथ भगवान का जन्म, दीक्षा तथा केवलज्ञान, तीनों कल्याणक इसी एकादशी के दिन हुए तथा 21वें तीर्थंकर भगवान नमिनाथ को केवलज्ञान भी इसी एकादशी के दिन प्राप्त हुआ। इस प्रकार इस अवसर्पिणी काल में तीन तीर्थंकरों के कुल पांच कल्याणक इसी दिन सम्पन्न हुए। जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में जिस दिन ये पांच कल्याणक सम्पन्न होते हैं, उसी दिन ऐरावत क्षेत्र भी इस क्रम से कल्याणक होते हैं। धातकीखण्ड द्वीप में 2 भरत क्षेत्र है, 2 ऐरावत क्षेत्र हैं। पुष्करार्ध द्वीप में भी 2 भरत क्षेत्र तथा 2 ऐरावत क्षेत्र हैं। इस प्रकार कुल 5 भरत क्षेत्र में 5x5 = 25 कल्याणक 5 ऐरावत क्षेत्र में 5x5 = 25 कल्याणक इस अवसर्पिणी काल में कुल 50 कल्याणक इस दिन मनाये जाते है। इसको अतीतकाल की चौबीसी और आनेवाली चौबीसी से जोडने पर 50x3 = 150 कल्याणक से यह पर्व विभूषित है। कहा जाता है - "नारका अपि मोदन्ते यस्य कल्याण पर्वसु । तीर्थंकर भगवान के कल्याणक के पवित्र क्षणों में समूचे संसार में सुख की लहर दौड जाती है, सदा दुख और पीड़ा में रहनेवाले नारकी के जीव भी उस पवित्र क्षण में अत्यन्त आनंद और सुख की अनुभूति करते है। क्योंकि भगवान अनन्त - अनन्त पुण्यों के पूँज होते है। उनकी पुण्यवाणी अतिशय और संसार के लिए परम हितैषिता एवं अद्वितीय होती है। कल्याणक का अर्थ ही है कल्याणकारी है। n101*****

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