Book Title: Jain Dharm Darshan Part 06
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 107
________________ 7. अर्हन्तो भगवन्त अर्हन्तो भगवन्त इन्द्रमहिता: सिद्धाश्च सिद्धि-स्थिता, आचार्यजिन-शासनोन्नति-करा: पूज्या उपाध्यायकाः। श्री सिद्धान्त-सुपाठका मुनिवरा रत्नत्रयाराधकाः । पचैते परमेष्ठिन: प्रतिदिनं कुर्वन्तु वो मङ्लगम् ||1|| शब्दार्थ इन्द्रमहिताः - इन्द्रों से पूजित। अर्हन्तो भगवन्त - अरिहंत भगवान। च- और। सिद्धिस्थिता सिद्धाः - मुक्ति में स्थित सिद्ध भगवान। जिन-शासनोन्नतिकराः - जिनशासन की उन्नति करने वाले। आचार्याः - आचार्य महाराज। श्री सिद्धान्तसुपाठकाः - सिद्धान्त को पढ़ाने वाले। पूज्या उपाध्यायकाः - पूजनीय उपाध्याय महाराज। रत्नत्रयाराधकाः - तीन रत्नों की आराधना करने वाले। मुनिवराः - श्रेष्ठ मुनि महाराज। एते पंच - ये पाँच। परमेष्ठिन: - परमेष्ठी। प्रतिदिनं - प्रतिदिन। वो - आपका। मंगलं कुर्वन्तु - मंगल करें। भावार्थ : इन्द्रों से पूजित श्री तीर्थंकर देव, मुक्ति में स्थित श्री सिद्धभगवान्, जिनशासन की उन्नति करनेवाले, श्री आचार्य महाराज, शास्त्र-सिद्धान्त को पढ़ानेवाले पूज्य उपाध्याय महाराज तथा ज्ञान, दर्शन और चारित्र रूप रत्नत्रय के आराधक श्रेष्ठ मुनि महाराज ये पाँच परमेष्ठी प्रतिदिन आप का कल्याण करें ||1|| +Nason93riva

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