Book Title: Jain Dharm Darshan Part 06
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 100
________________ 4. मूलसूत्र संसार दावानल की स्तुति संसार-दावानल-दाह-नीरं, संमोह-धूली-हरणे-समीरं । माया-रसा-दारण-सार-सीरं, नमामि वीरं गिरि-सार-धीरं ||1|| भावावनाम-सुर-दानव-मानवेनचूला-विलोल-कमलावलि-मालितानि | संपूरिताभिनत-लोक-समीहितानि, कामं नमामि जिनराज-पदानि तानि ||2|| बोधागाधं सुपद-पदवी-नीर-पूराभिरामं, जीवाहिंसाविरल-लहरी-संगमागाह-देहं । चूला-वेलं गुरूगम-मणी-संकुलं दूरपारं, सारं वीरागम-जलनिधिं सादरं साधु सेवे ||3|| आमूलालोलधूली-बहुल-परिमलालीssलीढ़-लोलालिमालाझंकाराराव-सारामलदल-कमलागार-भूमी-निवासे !! छाया-संभार-सारे! वरकमल-करे! तार-हाराभिरामे! वाणी-संदोह-देहे! भव-विरह-वरं देहि में देवि ! सारं ||4|| शब्दार्थ संसार-दावानल-दाह-नीरं - संसार रूपी सुर दानव-मानवेन - देवों, दानवों तथा दावानल के ताप को शांत करने में जल के समान। मनुष्यों के स्वामियों के। संमोह-धूली-हरणे-समीरं - मोहरूपी धूल को चूला-विलोल-कमलावलि-मालितानि - दूर करने में पवन के समान। मुकटों में रहे हुए देदीप्यमान कमलों माया-रसा-दारण-सार-सीरं - माया रूपी की पंक्तियों से सुशोभित पृथ्वी को खोदने में पैने हल के समान। संपूरिताभिनत-लोक-समीहितानि - गिरि-सार-धीरं-वीरं-नमामि। नमस्कार करने वाले लोगों के मनोरथों मेरू पर्वत जैसे धीर श्री वीरप्रभु को को जिन्होंने अच्छी तरह पूर्ण किए है। मैं नमस्कार करता हूँ। तानि-जिनराज-पदानि-कामं - नमामि। भावावनाम - भावपूर्वक नमस्कार करने वाले। उन जिनेश्वर के चरणों में मैं अत्यन्त श्रद्धा से नमस्कतार करता हूँ Jain Education International arrrrrrr For Personal Relata seca -86

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