Book Title: Jain Dharm Darshan Part 06
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

View full book text
Previous | Next

Page 33
________________ ज्ञान के भेद नंदी सूत्र में ज्ञान के पाँच भेद कहे गये हैं : 1. अभिनिबोधक (मतिज्ञान), 2. श्रुतज्ञान, 3. अवधिज्ञान, 4. मन:पर्यवज्ञान और 5. केवलज्ञान नंदी सूत्र में ज्ञान के दो विभाग भी किये गये हैं 1. प्रत्यक्ष और 2. परोक्ष 1. प्रत्यक्ष - प्रति+अक्ष ! अक्ष का अर्थ है आत्मा/जीव। जो ज्ञान सीधे आत्मा से होता है उसे प्रत्यक्ष ज्ञान कहते हैं। 2. परोक्ष - इन्द्रिय और मन की सहायता से होने वाला ज्ञान को परोक्ष ज्ञान कहते हैं। इस दृष्टि से मति और श्रुत ज्ञान परोक्ष तथा अवधि, मन:पर्यव और केवलज्ञान प्रत्यक्ष के अन्तर्गत आते हैं। ज्ञान प्रत्यक्ष परोक्ष अवधि मन:पर्यव केवल श्रुत इन्द्रिय मति जान प्रमाण 1. मतिज्ञान - आगमों में मतिज्ञान को अभिनिबोधक ज्ञान कहते हैं। पाँच इन्द्रियों एवं मन के माध्यम से आत्मा द्वारा | सामने आये पदार्थों को जान लेने वाले ज्ञान को मतिज्ञान कहते मति ज्ञान के मुख्यतः दो भेद हैं 1. श्रुतनिश्रित मतिज्ञान और 2. अश्रुतनिश्रित मतिज्ञान 1. श्रुतनिश्रित मतिज्ञान - श्रुत-निश्रित वह है जो श्रुत सुनने के परिणाम स्वरूप उत्पन्न हो। यह ज्ञान पहले पढे हुए या परम्परा से प्राप्त संकेत से प्राप्त होता है। 2. अश्रुत-निश्रित मतिज्ञान - अश्रुत निश्रित वह है जो 1 19.dise only ondi&AJAPAN oooooooo www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126