Book Title: Jain Dharm Darshan Part 06
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 50
________________ नयवाद लोक में अनंत पदार्थ हैं। प्रत्येक पदार्थ अनन्त धर्मात्मक गुणात्मक है। पदार्थ में व्याप्त इन गुणों को जानने-समझने की जो पद्धति है, उसे शास्त्रकारों ने प्रमाण और नय कहा है। प्रमाण के द्वारा पदार्थ को समग्र रूप से एक साथ जाना जाता है जबकि नय पदार्थ में विद्यमान गुणों में से एक समय में एक ही गुण अंश को जानने की पद्धति है। प्रमाण वस्तु के पूर्ण रूप को ग्रहण करता है और नय, प्रमाण द्वारा ग्रहीत वस्तु के एक अंश को जानता है। जैसे यह घडा है इस ज्ञान में प्रमाण घडे को अखंड भाव से उसके रूप, रस, गंध, स्पर्श आदि अनन्त गुणों का विभाग न करके पूर्ण रूप से जानता है, जबकि नय उसका विभाजन करके "रूपवाला घडा' 'रसवालाघडा' आदि रूप में उसे अपने-अपने अभिप्राय के अनुसार जानता है। अत: नय एक ही वस्तु को अपेक्षा भेद से या अनेक दृष्टिकोणों से ग्रहण करने वाले विकल्प अर्थ को नाना प्रकार से जाननेवाले अभिप्राय विशेष है। पदार्थ के अनन्त धर्मो में से किसी एक की मुख्यता करके अन्य धर्मो का विरोध किये बिना उन्हें गौण करके साध्य को जानना, नय है। कथन की अपेक्षा का स्पष्ट करना अर्थात् कहने के जितने तरीके हैं, वे सब नय हैं। नय के भेद : यूँ तो नयों के अनंत भेद हैं फिर भी स्थूलता से नयों के मूल सात भेद हैं। 1. नैगम, 2. संग्रह, ___3. व्यवहार, 4. ऋजुसूत्र, 5. शब्द, 6. समभि रूढ, 7. एवंभूत। 1. नैगम नय :- संकल्प मात्र को ग्रहण करने वाला नैगमनय है। जैसे कोई पुरूष प्रस्तक बनाने के लिए लकडी कहाँ जा लेने जा रहा हूँ। काटने जंगल जा रहा है। उसे कोई पूछता है कि तुम कहाँ जा रहे हो? रहे हो? वह उत्तर देता है “प्रस्तक लेने जा रहा हूँ।" वस्तुतः वह पुरूष लकडी काटने जा रहा है प्रस्तक तो पश्चात बनेगा। किन्तु प्रस्तक के काट रहा हूँ। संकल्प को दृष्टि में रखकर ही वह इस प्रकार कहता है। उसका प्रस्तुत उत्तर नैगम नय | की दृष्टि से ठीक है। । इस नैगम नय में अनेक __ औपचारिक व्यवहार भी आते हैं जैसे चूल्हा जल रहा है, यह रास्ता कहाँ जा रहा है? ये सब औपचारिक व्यवहार है, क्योंकि चूल्हा नहीं जलता है, लकडी । प्रस्तक प्रस्तक क्या कर रहे हो? sers63

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