Book Title: Jain Dharm Darshan Part 06
Author(s): Nirmala Jain
Publisher: Adinath Jain Trust

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Page 41
________________ 1. भवप्रत्यय अवधिज्ञान जिस अवधिज्ञान के क्षयोपशम में भव (जन्म) निमित्त बनता है अर्थात् जो जन्म के साथ ही साथ प्रकट होता है, वह भव प्रत्यय अवधिज्ञान कहलाता है। देवगति और नरकगति में पैदा होनेवाले प्राणियों को यह ज्ञान जन्म से ही प्राप्त होता है। उन्हें भी यह ज्ञान प्राप्त तो क्षयोपशम से ही होता है पर उस क्षयोपशम के लिए उन्हें कोई प्रयत्न या पुरूषार्थ नहीं करना पड़ता। नरक और देव में उत्पन्न होने मात्र से ही उनका वैसा क्षयोपशम हो जाता है। da तीर्थंकर बनने वाले जीव को अवधिज्ञान भव प्रत्यय ही होता है। यद्यपि तीर्थंकर मनुष्य होते और मनुष्यों को होनेवाला अवधिज्ञान पुरूषार्थसापेक्ष होता है जन्मजात नहीं, फिर भी तीर्थंकर इस विषय में अपवाद होते हैं, क्योंकि वे गर्भ से ही तीन ज्ञान (मति, श्रुत और अवधि) से युक्त होते हैं। 2. क्षयोपशभिक (गुणप्रत्यय) अवधिज्ञान अवधिज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से जो अवधिज्ञान प्राप्त होता है, वह क्षयोपशमिक या गुणप्रत्यय अवधिज्ञान कहलाता है। यह मनुष्य और तिर्यंच गति में होता है। यह अवधिज्ञान जन्मजात नहीं होता। इस अवधिज्ञान के छ प्रकार हैं १. आनुगामिकं अवधिज्ञान 1. अनुगामी अवधिज्ञान जो _अवधिज्ञान अपने उत्पत्ति क्षेत्र को छोडकर दूसरे स्थान पर चले जाने पर भी विद्यमान रहता है, जो एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में अथवा एक जन्म से दूसरे जन्म में जाते समय अपने स्वामी के पीछे-पीछे अनुगमन करे उसे अनुगामी अवधिज्ञान कहते हैं। जैसे चलते हुए व्यक्ति के साथ नेत्र, सूर्य के साथ आतप धूप तथा चन्द्र के साथ चाँदनी रहती है, इसी तरह जो निरन्तर ज्ञानी के साथ-साथ रहे, वह अनुगामी अवधिज्ञान है। अवधि ज्ञान के भेद FOX 27

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