Book Title: Jain Dharm Darshan Ek Anushilan
Author(s): Dharmchand Jain
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 7
________________ प्रकाशकीय प्राक्कथन (i) तत्त्वमीमांसा 1. 2. काल का स्वरूप 3. सर्वार्थसिद्धि में आत्म-विमर्श 4. सूत्रकृताङ्ग में परमतानुसारी आत्म-स्वरूप की मीमांसा 5. आगम-साहित्य में पुद्गल एवं परमाणु 6. 7. 8. कर्मसाहित्य में तीर्थङ्कर प्रकृति अर्द्धमागधी आगम-साहित्य में अस्तिकाय (ii) ज्ञानमीमांसा 1. 2. 3. 4. 5. 6. अनुक्रमणिका कारण-कार्य सिद्धान्त एवं पंच कारण - समवाय अनेकान्तवाद का स्वरूप और उसके तार्किक आधार 2. श्रुतज्ञान का स्वरूप सम्यग्दर्शन (iii) आचारमीमांसा 1. जैन न्याय में प्रमाण - विवेचन जैन प्रमाणशास्त्र में अवग्रह का स्थान नय एवं निक्षेप 'इसिभासियाई' का दार्शनिक विवेचन आचारांगसूत्र में अप्रमत्त जीवन की प्रेरणा अहिंसा का समाज दर्शन 3. आचारांगसूत्र में अहिंसा = vii 01 13 34 50 77 93 125 141 152 164 184 209 229 256 276 284 296

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