Book Title: Jain Dharm Darshan Ek Anushilan Author(s): Dharmchand Jain Publisher: Prakrit Bharti Academy View full book textPage 6
________________ जैन धर्म-दर्शन : एक अनुशीलन आदि ज्ञानमीमांसीय एवं प्रमाणमीमांसीय विषयों का शोधात्मक आलेखन किया गया है। अहिंसा की स्थापना हेतु आगमिक युक्तियाँ, अहिंसा का समाजदर्शन, जीवन में अप्रमत्तता, अपरिग्रह की अवधारणा, परिग्रह परिमाणव्रत के औचित्य, पर्यावरणसंरक्षण, भोगोपभोग-परिमाणव्रत, समाधिमरण, प्रतिक्रमण आदि विषयक आलेख जैनदर्शन की आचारमीमांसा को स्पष्ट करते हैं। कतिपय तुलनात्मक आलेख भी इस ग्रन्थ के गौरव का अभिवर्धन करते हैं। वाचक उमास्वाति के दोनों जैन-परम्पराओं को मान्य प्रमुख सूत्र ग्रन्थ तत्त्वार्थसूत्र एवं उन्हीं के प्रशमरतिप्रकरण की तुलना से ज्ञात होता है कि इनकी विषय वस्तु एवं प्रतिपादन शैली में पर्याप्त साम्य है। दो आलेख वैदिक एवं जैन परम्परा की तुलना से सम्बद्ध हैं, जिनके अन्तर्गत एक में उत्तराध्ययन सूत्र में निरूपित वीतरागता एवं भगवद्गीता में प्रतिपादित स्थितप्रज्ञता की तुलना हुई है तो दूसरे आलेख में निगम (वेद) एवं जैन आगम-परम्परा में अन्तःसम्बन्ध दर्शाते हुए अनेक तथ्य उद्घाटित किए गए हैं। बौद्ध एवं जैन दर्शन की तुलना करते हुए उनमें साम्य एवं भेद का प्रतिपादन किया गया है, दोनों धर्म-दर्शनों की दृष्टि से वर्णाश्रम एवं संस्कारों की चर्चा की गई है। ___ आशा है यह पुस्तक जैन धर्म-दर्शन के मौलिक स्वरूप को समझने में रुचि रखने वाले जिज्ञासु पाठकों एवं शोधार्थियों के लिए उपयोगी सिद्ध होगी। पुस्तक के लेखक डॉ. धर्मचन्द जैन तथा प्रूफ संशोधन आदि में सहयोगी डॉ. श्वेता जैन एवं श्री देवेन्द्रनाथ मोदी के भी हम आभारी हैं। देवेन्द्रराज मेहता संस्थापक एवं मुख्य संरक्षक प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर (राज.)Page Navigation
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