Book Title: Jain Darshan me Tattva Mimansa
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 8
________________ सात ७१ ७१ ७४ ७५ ७८ आत्मा का आंतरिक वातावरण परिस्थिति कर्म की पौद्गलिकता आत्मा और कर्म का संबंध बंध के हेतु बंध कर्म : स्वरूप और कार्य बन्ध की प्रक्रिया कर्म कौन बांधता है ? कर्म-बंध कैसे? फल-विपाक कर्म के उदय से क्या होता है ? फल की प्रक्रिया उदय अपने-आप उदय में आने वाले कर्म के हेतु दूसरों द्वारा उदय में आने वाले कर्म-हेतु पुण्य-पाप मिश्रण नहीं होता कोरा पुण्य धर्म और पुण्य पुरुषार्थ भाग्य को बदल सकता है आत्मा स्वतंत्र है या कर्म के अधीन ? उदीरणा उदीरणा का हेतु वेदना निर्जरा कर्म-मुक्ति की प्रक्रिया अनादि का अन्त कैसे ? लेश्या कर्मों का संयोग और वियोग : आध्यात्मिक विकास और हास Mow mr mro urur v . . २३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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