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जैन दर्शन
बनाता है, परन्तु वह चर्भचक्षुओंसे देखने में नहीं आसकता इस लिये आप यह नहीं कह सकते कि संसारमें कितनी एक वस्तुयें: विना किसीके बनाये भी बन सकी हैं। ___ अकर्तवादी-भाई ! श्राप जो यह फरमाते हैं कि वह ईश्वर हमारे चर्मचतुओसे देखनेमें नहीं आ सकता, तो क्या वह शरीर रहित है जिससे नहीं दीख सकता ? या उसमें कोई ऐसा चमकार है कि जिससे देखने में नहीं आ सकता ? अथवा उसमें किसी प्रकारकी कोई विशेषता है कि जिससे वह दृष्टिगोचर नहीं हो सकता?
कटवादी-ईश्वर जन्ममरण धारण ही नहीं करता तो वह शरीरधारी किस तरह हो सकता है ? अर्थात् वह अशरीरी है और इसी कारण वह किसीको दृष्टिगोचर नहीं होता।
अकवादी--महाशयजी! यदि आपके कहे मुजव ईश्वर अशरीरी है तो फिर वह जगतको किस तरह बनाता है ? या बना सकता है? यदि शरीर विनाभी जगतकीरचना हो सकती हो तो मोक्ष पदको प्राप्त हुई आत्मायें कि जो शरीर रहित हैं वे भी जगतकी रचना क्यों नहीं कर सके ? तथा प्रात्मामें रहे हुये बुद्धि, इच्छा और प्रयत्न आदि गुण शरीरकी हयातीमें ही कार्य कर सकते हैं परन्तु शरीरके अभावमें वे कुछ भी काम नहीं कर सकते । इस लिये यदि श्राप ईश्वरको शरीरवाला मान सकेंगे तब ही वह जगतका रचयिता हो सकता है अन्यथा नहीं।
कवादी--भाई ! ईश्वरमें तो इस प्रकारका चमत्कार है कि जिससे वह हमारे देखने में नहीं सकता।
अकसेवादी--महानुभाव ! जरा इस बातपर विचार कीजिये कि जो नजरसे दीख सकती हो ऐसी कोई भी चीज या कोई व्यक्ति वह चाहे किसी कारण रोज न देख पड़ती हो परन्तु कभी न कभी तो किसीके देखनेमें अवश्य ही आवेगी, अर्थात् जो कभी रोज न देख पड़ता हो वह कभी न कभी तो मंत्र, विद्या या योगके प्रभावले जरूर ही नजर पड़ेगा। कोई भी विद्यावाला, मंत्रवाला या योगवलवाला ऐसा नहीं है कि जो कभी भी भूत-प्रेतके समान