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जैन दर्शन
भी लिखा है कि 'पुद्गलास्तिकाय' इस प्रकार पुद्गलास्तिकायके अस्तित्व में किसी प्रकारकी क्षति नहीं आती । वैशेषिक मतवाले कहते हैं कि पृथ्वी, पानी, तेज और वायु इन चारोंके समस्त परमाणु जुदे जुदे हैं अर्थात् इन चारोके परमाणुओंमें भिन्न २ गुण रहे हुये हैं । परन्तु जैन सिद्धान्त इस बातको सत्य नहीं मानता। जैन सिद्धान्त बतलाता है कि परमाणुमात्र एक समान हैं याने प्रत्येक परमाणु में एक समान गुण रहे हुये हैं। जो गुण पृथ्वीके परमाणुओमें हैं वही गुण वायुके परमाणुमें भी हैं। अर्थात् जैन सिद्धान्तके अनुसार वैशेषिकों के समान परमाणुके कुछ भिन्न २प्रकार नहीं हैं। परमाणुओझे जो कुछ भिन्नता मालूम देती है वह कुछ उनके जुदे जुदे प्रकार के लिये नहीं परन्तु उनमें होते हुये परिवर्तनके लिये है, इस लिये भिन्न भिन्न परिवर्तनवाले परमाणुओंको जुदे जुदे प्रकारके माननेकी अपेक्षा जुदे जुदे परिवर्तनवाले ही मानना उचित है। जैसे कि हींग और नमक ये दोनों ही पृथ्वीके परमाणुओसे बने हुये हैं और इन दोनों का ज्ञान स्पर्शन, नेत्र, जीभ, और नासीकासे हो सकता है। जब इन दोनोंको पानी में डालदिया जाय तब इनका ज्ञान, नेत्र और स्पर्शन्से नहीं हो सकता परन्तु सिर्फ जीम और नासीकासे ही हो सकता है। उन परमाणुओं में जो . इस प्रकारका परिवर्तन हुआ है वह कुछ उनके जुदे जुदे प्रकारके लिये नहीं परन्तु उनमें होनेवाले एक प्रकारके संसर्गसे हुआ है। अर्थात् जो हींग और नमक पानी में न डाला था-उसके और जो हींग एवं नमक पानी डाला है उसके परमाणु कोई जुदे जुदे दो । प्रकारके नहीं है उन दोनोंके परमाणु एक ही प्रकारके है तथापि मान संसर्गके कारण उनमें ऐसा विचित्र परिवर्तन देखने में आता. है। इसी प्रकार पृथ्वी, पाणी, और तेज, वायु इन सबके परमाणु एक सरीखे हैं तथापि फक्त संसर्गके कारण ही उनमें विचित्र परिवर्तन हुआ.करते हैं और वे सब प्रत्येक इन्द्रियसे मालूम नहीं हो सकते इससे उन सबको मिन प्रकारके परमाणु मानना यह बात किसी भी प्रकार युक्तियुक्त नहीं। यह वात पहले ही विदित