Book Title: Jain Darshan
Author(s): Tilakvijay
Publisher: Tilakvijay

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Page 242
________________ (२२४) (१६) मकलदाल (१७) संभूआता (१८) नाहडसरा ' ' (१९) कटेचा (२०) महाजनीया (२१) मुंगरेचा ' (२२) हूडीया और तेवीसवीं एक शाखा पुस्तकमें नहीं होनेसे नहीं लिखी और. इन तेवीस में से चार ( ४) शाखा फिर निकली तिनके नाम. (१) जांगडा (२) मगदीया. (३) कुटेवा. ( ४ ) कुचेलीया ७. विक्रम सम्बत् १०२६ ( एक हजार छबीस ) में विमान सूरीजीने सोनीगरा चोहानको प्रतिवोध करके तिसका संचेती गोत्र स्थापन किया ८. विक्रम सम्बत् १०९१ ( एक हजार इकाण) में श्रीलोद्रवापुर पट्टग में यादवकुलके भाटी गोत्रका सागर नामा रावल राज करताथा. उसके दो पुत्र-एक श्रीधर, और दूसरे राजधरथे इन दोनोंको प्रतिबोध करके श्री जिनेश्वर सूरीजीने ओसवाल वंश और भणशाली गोत्र स्थापन किया ९. विक्रम सम्बत् १११२ ( एक हजार एकसो वारा) में मंढोके राजा धवलचन्दको श्री जिनवल्लभसूरीजीने प्रतिवोध करके ओसवाल वंश और कुकुडचोपडा गोत्र स्थापन किया. १०. विक्रम सम्बत् १११७ (एक हजार एकसो सतरा) में सोनीगरा 'नगरका राजा जातिका चौहान सगर नामा था तिसके बेटे बोहिछकुमारको जिनदत्तसूरीजीने प्रतिवोध करके ओसवाल वंश और बोहिछरा गोत्र स्थापन किया ११. विक्रम सम्बत् १११७ (एक हजार एकसो सतरा) में जातिके राठोड रजपूत तिनको श्री जिनदत्तसूरीगीने प्रतिबोध करके ओसवाल वंश और अठारह गोत्र स्थापन किये तिनके नाम यह हैं. १ सांनुसुखा. २ पेतिसा. ३ पारख ४ चोरवेडीया. ५ बुच्चों ६ चम्म ७ नाबरीया ८ गद्दहीया ९ फाकरीया १० कुंभटीया १३ सीयाल १२ सचोवा १३ साहिल १४ घंटेलीया १५ काकडा १६ सीघडा १७ संखवालेचा १८ कुरकुचीया. नोट. इन ऊपर के लिखे हुए गोत्रोंको गोलवछ गोत्रके भेद समझना १२. विक्रम सम्वत् ११९२ ( एक हजार एकसो बाणवें) में मुलतान नगरके वासी धींगडमल्ल महेश्वरी बाणियाके पुत्र लुनाको श्री जिनदत्तसूरीजीने प्रतिवोध करके ओसवाल वंश और लुनीया गोत्र स्थापन किया

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