Book Title: Jain Darshan
Author(s): Tilakvijay
Publisher: Tilakvijay

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Page 199
________________ प्रमाणवाद १८१ है अतः वह तुच्छरूप होनेसे उसके साथ सम्बन्ध ही क्या हो ? इस लिये परपर्याय भी ऐसे ही तुच्छरूप होनेके कारण उसके साथ घटका सम्बन्ध ही फिस तरह होसकता है। क्योंकि जो कुछ तुच्छरुप होता है उसमें किसी प्रकारकी शक्ति नहीं होती, इससे उसमें सम्बन्ध शक्ति भी कहाँसे हो? दूसरी एक यह बात भी है कि यदि घटमें परपर्यायोका नास्तित्व है तो उसके साथ याने नास्तित्वके ही साथ घटका सम्बन्ध हो यह तो गचित है, परन्तु परपर्यायोंके साथ उसका सम्बन्ध किस तरह घट सकता है?क्योंकि घटका सम्बन्ध पटाभाव (पटके नास्तित्व) के साथ है इससे घटका सम्बन्ध पटके साथ ही हो ऐसा कभी नहीं देना और न ही कभी सुना है। यदि यहाँपर यह माना जाय कि परपर्यायोंके नास्तित्वके साथ घटका सम्बन्ध है अतः घटका सम्बन्ध परपायोंके साथ भी हो सकता है तो फिर यह भी मानना चाहिये कि घटका सम्बन्ध पटके नास्तित्वके साथ है अतः पटके साथ भी उसका सम्बन्ध होना चाहिये । परन्तु यह मान्यता सर्वथा असत्य होनसे किसी को भी मान्य नहीं हो सकती और इस प्रकार परपर्यायोंके साथ घटका किसी तरहका सम्बन्ध हो यह पात यथार्थ मालूम नहीं देती। इस वातका समाधान इस प्रकार किया जाता है नास्तित्वका अर्थ यहाँपर ऐसा समझना चाहिये कि उस स्वरूपमें उनका न होना, अर्थात् घटमें पटका-बलका नास्तित्व याने घट वखारुपमें नहीं परन्तु अपने-घटरूपमें है। इस प्रकारका अर्थवाला नास्तित्व उस वस्तुका धर्म है, अतः वह कुच्छ सर्वथा तुच्छ रूप नहीं गिना जा सकता, और ऐसा होनेसे ही नास्तित्वका सम्बन्ध घटके साथ न हो यह भी नहीं बन सकता । फ्योंकि घड़ा कपड़ेरूपमें नहीं है ऐसा फहने, अर्थात् घटकी सत्ताको मालूम करने में वह घड़ा कपड़ेरूपमें नहीं है इस भावकी भी खास आवश्यकता पड़ती है । वसमें जो जो गुणधर्म और स्वभाव रहे हुये हैं चे घटमें नहीं हैं इस रूपसे घट नहीं है, परन्तु वह घट रुपमें ही है। इससे यह बात स्पष्टतया जानी जा सकती है कि घट अपना स्वरूप मालूम करते हुए पटरूपमें नहीं है, इस विशेषणकी

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