Book Title: Jain Darshan
Author(s): Tilakvijay
Publisher: Tilakvijay

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Page 239
________________ प्रमाणवाद २२१ वार्तिक, प्रमाणमिमांसा, न्यायावतार, अनेकान्तजयपताका, अनेकान्तप्रवेश, धर्मसंग्रहणी और प्रमेयरत्नकोप वगैरह २ दिगम्बरोंके मुख्य २ तर्कग्रंथ निम्न लिखित हैं-प्रमेयकमलमार्तड, न्यायकुमुदचन्द्र, आतपरीक्षा, अष्ठसहस्री, सिद्धान्त सार, और न्यायविनिश्चयटीका, वगैरह २ · वेडारूपः समुद्रे खिल जल चरिते क्षारभारे भवेऽस्मिन्, दायी यः सद्गुणानां परकृतिकरणाद्वैतजीवी तपस्वी । अस्माकं वीर धारोऽनुगत नरवरो वाहको दान्तिशान्त्योः दद्यात् श्रीवीरदेवः सकल शिवसुख मारहा चाप्तमुख्यः ॥ । समातोयं ग्रन्थः । १प्राप्यकारी याने पदार्थको स्पर्श करके ज्ञान करनेवाली (प्राप्य-प्राप्त फरके-कारि-करनेवाली ) अर्थात् पदार्थके स्पर्शको प्रातकरके ज्ञानकरानेवाली।

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