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जीववाद
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अतः घठ, पट, लेखन वगैरहमें यदि चैतन्य नहीं देख पड़ता तथापि इससे हमारी ( नास्तिको की) शरीरका आकार धारण करनेवाले भूतोंसे चैतन्य शक्ति पैदा होती है यह युक्ति असत्य सावित नहीं होती । विचार करने से नास्तिकों की यह युक्ति भी बोदी ही मालूम होती है । हम उनसे यह प्रश्न करते हैं कि भूत जिस शरीर के आकारको धारण करते हैं उसमें कारणरूप कौन कौनसी वस्तुयें हैं ? क्या एकले भूत ही कारण हैं या अन्य भी कुछ हैं, या कुछ कारण ही नहीं ? यदि एकेले भूतोंको ही कारणरूप मान लिया जाय तो वस्तु मात्रमें चेतनाशक्तिका प्रादुर्भाव होना चाहिये क्योंकि तमाम वस्तुओं में वे ही भूत रहे हुये हैं कि जिन्हें नास्तिक लोक चैतन्य और शरीर के आकारका कारणभूत मानते हैं। यदि यह दलील आगे घरी जाय कि भूतमात्रसे ही शरीरका आकार धारण नहीं किया जाता उसमें अन्य भी कितने एक सहकारी कारण की जरूरत पड़ती है और वे सहकारी कारण सव जगह न होनेसे वस्तु मात्रमें चैतन्य मालूम न दे एवं वे सहकारी कारण जहाँपर हों वहाँ ही चैतन्य मालूम दे यह संभवित है अतः सर्वत्र चैतन्यका प्रादुर्भाव होना चाहिये । प्रास्तिक के इस दूष
को यहाँ पर किस तरह स्थान मिल सकता है ? इस विषय में भी हम एक प्रश्न पूछना चाहते हैं और वह यह कि जो सहकारी कारण हैं वे सब किससे बने हुए हैं ? इसके उत्तर में आपको यह स्पष्ट ही कहना पड़ेगा कि वे सहकारी कारण भी भूतोंसे ही बने हुये हैं, क्योंकि आप लोग भूतोंके सिवाय अन्य कोई पदार्थ मानते ही नहीं । आपकी मान्यताके अनुसार सर्वत्र भूत रहे हुए हैं अतः सहकारी कारण भी सर्वत्र ही होने चाहिये और इसी कारण वस्तु मात्र में चैतन्यका प्रादुर्भाव होना चाहिये । इस तरह का जो हमारा कथन है वह कदापि असत्य सावित नहीं हो सकता । यदि यों कहा जाय कि भूत जो शरीरका आकार धारण करते हैं उसमें कोई एकेले भूत ही कारण नहीं हैं किन्तु अन्य भी कारण हैं; यह बचाव भी उनका ठीक नहीं। क्योंकि भूतों को सिवाय संसार में वे अन्य किसी वस्तुका अस्तित्व ही नहीं मानते ।
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