Book Title: Jain Agamo me Parmatmavada Author(s): Atmaramji Maharaj Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti View full book textPage 7
________________ देना चाहिए, ईश्वर की कृपा ही उसकी बिगडो बना सकती है। __ वैदिक दर्शन का कहना है कि भक्त ईश्वर की कितनी भक्ति कर ले,उपासना करले,कितना ही उसका गुणानुवाद करले, पर भक्त भक्त रहेगा और ईश्वर ईश्वर। भक्ति,पूजा,जप,तप त्याग वैराग्य आदि किसी भी प्रकार के अनुष्ठान के आराधन से भक्त ईश्वर नही बन सकता है। ईश्वर र भक्त के बीच मे जो भेद-मूलक फौलादी दीवार खडी है, वह कभी समाप्त नहीं हो सकती है। __इस के अलावा, वैदिक दर्शन विश्वास रखता है कि ससार मे जब अधर्म बढ जाता है, धर्म की भावनाए दुर्बल हो जाती है, पाप सर्वत्र अपना शासन जमा लेता है, तो पापियो का नाश करने के लिए तथा धर्म की स्थापना करने के लिए ईश्वर अवतार धारण करता है। मनुष्य, पशु आदि किसी न किसी रूप में जन्म धारण करता है। यह वैदिक दर्शन के ईश्वर के स्वरूप का सक्षिप्त परिचय है। जैन-परम्परा और ईश्वर शब्दजैन साहित्य का परिशीलन करने से पता चलता है कि उस मे परमात्मा के अर्थ मे ईश्वर शब्द का कही प्रयोग नही नही मिलता है । जैनदर्शन मे परमात्मा के लिए सिद्ध, बुद्ध, अजर,अमर, सर्वदु खपहीण, निरजन, मुक्तात्मा आदि शब्दो का व्यवहार मिलता है। जैन दर्शन की दृष्टि से ये समस्त शब्द पर्यायवाची है, सामान्यतया एक ही अर्थ के वाचक है। मुक्तात्मा के स्वरूप का विवेचन करते हुए भगवान महावीर ने श्री आचाराग सूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध के पञ्चम अध्ययन केPage Navigation
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