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(नौ)
जैनागमों, व्याख्याकारों और संगीत ग्रंथों में प्राप्त वर्णन में परस्पर संवादिता न होने पर विमर्श भी प्रस्तुत किया गया है। डॉ. लालमणि मिश्र की पुस्तक 'भारतीय संगीत वाद्य', बी. चैतन्यदेव की पुस्तक वाद्य यंत्र', एम. ए. पुरंदर की पुस्तक-'भारतीय वाद्य गलु', शन्नोखुराना की पुस्तक 'राजस्थान का लोक संगीत' आदि पुस्तकों का इसमें काफी उपयोग किया गया है।
अंत में तीन परिशिष्ट दिये गए हैं-- प्रथम परिशिष्ट में अकारादि क्रम से प्राकृत शब्द तथा उसके हिन्दी आदि अर्थ दिये गये हैं।
द्वितीय परिशिष्ट में मूल प्राकृत शब्द तथा तत, वितत, घन और सुषिर वाद्यों की तालिका दी गई है।
तृतीय परिशिष्ट में संदर्भ ग्रंथ सूची प्रस्तुत की गई है। आभार
जीवन निर्माता परमाराध्य गणाधिपति श्री तुलसी एवं हमारे प्रेरणास्रोत आचार्यश्री महाप्रज्ञजी २०वीं शताब्दी के आगम-दिवाकर हैं। उनके प्रत्यक्ष निर्देशन में यह कार्य संपादित करने का सौभाग्य हमें प्राप्त हुआ । जैन विश्व भारती द्वारा प्रायोजित आगम साहित्य प्रकाशन के अंतर्गत प्रकाशित सारे शोध-ग्रंथ इनके अन्तःदर्शन (Tntuition) की लेजर किरणों की पैनी पहुंच के कारण समग्र विद्वज्जगत् में प्रशंसनीय हुए हैं। प्रस्तुत ग्रंथ में भी यत्र-तत्र जो उन्मेष आए हैं, उनमें उनकी प्रज्ञा का अकल्पनीय योग हैं।
श्रद्धेय युवाचार्यश्री महाश्रमणजी की प्रेरणा, प्रोत्साहन ने इस कार्य को गति प्रदान की है।
इस श्रम साध्य कार्य में मुनिश्री धनंजयकुमारजी का अविस्मरणीय सहयोग एवं मार्ग दर्शन प्राप्त होता रहा, जिससे यह दुरुह कार्य संभव हो सका।
श्री संदीप कुमार मेहता (बोराबड़) का लिपिकरण आदि कार्यों में सहयोग रहा है।
भारतीय संगीत वाद्य पुस्तक को उपलब्ध कराने में शासनसेवी श्री मांगीलालजी सेठिया का उल्लेखनीय सहयोग रहा।
प्रकाशन-व्यवस्था में जैन विश्व भारती के मंत्री श्री भागचंदजी बरडिया तथा भाई श्री किशन जैन निष्ठा से सक्रिय रहे हैं।
ज्ञात-अज्ञात, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जिन-जिनका सहयोग प्राप्त हुआ हैं, उनके प्रति कृतज्ञता एवं शुभाशंसा।
आशा है प्रस्तुत ग्रंथ न केवल आगम अध्येताओं के लिए अपितु इस क्षेत्र में शोध कार्य करने वाले अध्येताओं के लिए भी उपयोगी सिद्ध होगा।
राजसमंद
मुनि वीरेन्द्र कुमार मुनि जय कुमार
५ जून २००४
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