Book Title: Jain Agam Vadya Kosh
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 22
________________ जैन आगम वाद्य कोश (गोविषाण) सदृश लगता है। प. ४१२ में इसकी वादन-विधि का संक्षिप्त विवरण-यह वाद्य भैंसे और हिरण के सींग का विवरण देते हुए लिखा-“गोधिका-भाण्डानां कक्षाबना होता है। अथवा पीतल आदि धातुओं से हस्तगतातोद्य विशेषः'। भांडों द्वारा कांख और बनाया जाता है। तीन भागों में विभक्त यह वाद्य हाथ में रखकर बजाये जाने वाला वाद्य। अतः इसे फूंक मारने पर जोर से आवाज करता है। घन-वाद्य के रूप में स्वीकार किया गया है। इस वाद्य के कई नाम हैं-उत्तर में तूरी, गोमुखी, (विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-राजस्थान का राजस्थान में बांकया अथवा वारग. कर्नाटक में लोक संगीत) बांके, मध्यप्रदेश में रणसिंघा और हिमाचल प्रदेश में नरसिंघा। इसका एक और रूप गुजरात में घंटा (घण्टा) प्रश्न. ४/४ भग. ९/१४१, आ. नागफनी कहा जाता है। जैसा कि नाम से प्रकट है चू. १५/२८ कि वाद्य नाग के आकार का होता है और मुख घण्टा की झालर फन जैसी होती है जिसका मुख खुला और दो जीभ वाला होता है। आकार-पीतल, जस्ता और तांबा आदि धातुओं के मिश्रण से बना भारी और मोटे दल का वाद्य, जिसके मध्य भाग में एक छोटी-सी घुण्डी लटकी गोहिया (गोधिका) निसि. १७/१३८, ठाणं ७/ रहती है, जो घंटे के भीतरी भाग पर आघात ४२, अनु. ३०१, आ. चू. ११/३ करती है। गोधा, गोधिका, गारसिया की लेजिम। विवरण-आधुनिक युग में घंटों के विभिन्न आकारआकार-धनुष के समान प्रतीत होने वाला वाद्य। प्रकार देखने को मिलते है। प्राचीन काल में घंटों विवरण-बांस का एक बडा धनषाकार वाद्य, जिसमें का स्वरूप प्रायः एक समान था। लोहे की जंजीर और पीतल की छोटी गोल पत्तियां घन-वाद्य के अन्तर्गत "संगीत-शास्त्रों' में जिस लगी रहती है। इसके हिलाने पर झनझनाहट की घण्टा-वाद्य का वर्णन मिलता है, वह आज भी ध्वनि उत्पन्न होती है। भांड जाति एवं गारसिया मंदिरों में आरती के समय पुजारी के बाएं हाथ में जाति के लोग इसे बजाते हैं। देखा जा सकता है। शास्त्रों में वर्णित प्रकार से विमर्श-डॉ. लालमणि मिश्र ने अपने शोध-प्रबंध कुछ छोटा होने के कारण आजकल प्रायः इसे "भारतीय संगीत वाद्य' में गोधा वाद्य को सषिर 'घण्टी' कहा जाने लगा है। इस घण्टी अथवा घण्टे वाद्यों के अन्तर्गत लिया है। बी. चैतन्यदेव ने का शास्त्रीय संगीत से कोई संबंध नहीं है। प्राचीन गोधा को वाद्य यंत्र में वीणा के अन्तर्गत लिया है। ग्रथो में घटा का शास्त्रोक्त रूप इस प्रकार था :अनुयोगद्वार सूत्र के टीकाकार ने टी. पृ. १२९ पर प्राचीन घण्टा कांसे का होता था जो आठ अंगुल "चर्मावनद्धवाद्य-विशेष" कहकर इसके अवनद्ध- ऊंचा होता था। इसके मुख की चौड़ाई चार अंगुल वाद्य होने का संकेत दिया है। उक्त वर्गीकरण की होती थी जो गोल रहता था। इस मूल पिण्ड सत्य प्रतीत नहीं होता, क्योंकि निसि. १७/१३८, में एक छिद्र रहता था जिसमें एक शलाकानुमा आ. च. ११/३ में गोहिया शब्द को घनवाद्य के गोल दण्ड आवश्यकतानुसार पतला या मोटा जड़ अन्तर्गत लिया है। आचारांग के टीकाकार ने टी दिया जाता था। इसके निचले हिस्से में एक लोटा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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