Book Title: Jain Agam Vadya Kosh
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 32
________________ जैन आगम वाद्य कोश २१ इस प्रकार है शब्द के विवरण में प्राचीन और नवीन दोनों के जिस प्रकार तबले में दो नग होते हैं-एक दांया आधार पर दुंदुभि का वर्णन किया गया है। और दूसरा बांयां दोनों को मिलाकर तबला कहा जाता है। उसी प्रकार दुंदुभि में भी दो नग होते नंदि (नंदी) निसि. १७/१३६ हैं। एक बड़ा नगाड़ा जिसका शब्द गंभीर होता है नंदी, उपंग, आनंद लहरी, खंगम (बंगाल) तथा एक छोटा नगाड़ा जिसका शब्द छोटा तथा अपंग (राज.) ऊंचा होता है। इस प्रकार यह दो स्वर वाला दो नग का वाद्य दुंदुभि कहलाता है। छोटा नगाड़ा आकार-छोटी ढोलक का लगभग आधा भाग, मिट्टी का बना हुआ होता है। जिसे 'झील' अथवा जो दो हिस्सों में विभक्त तथा एक तार से जुड़ा 'अघोटी' कहते हैं। यह चमड़े का मढ़ा हुआ तथा रहता है। चमड़े की ही डोरियों से कसा हुआ होता है। दूसरा नगाड़ा बड़ा होता है जो शंकु के आकार का धातु का बना होता है। इसके मुख का व्यास लगभग एक हाथ का होता है तथा स्थूल चमड़े से मढ़ा हुआ होता है। यह नगाड़ा इच्छानुसार बड़ा बनाया जा सकता है। यह दो शंकु आकार की गोल लकड़ियों से बजाया जाता है जो प्रायः एक हाथ लम्बी होती हैं। उत्तर प्रदेश में प्रचलित नगाड़ा जो नौटंकी (स्वांग) के साथ बजाया जाता है, दुंदुभि से पूर्ण साम्य रखता है। दुंदुभि आनन्दोत्सव, विवाहादि के समय तथा देवमंदिरों में बजायी जाती है। आगमों में स्थान-स्थान पर प्रसन्नता के अवसर पर देवताओं द्वारा दंदभि वादन का वर्णन हआ है। युद्ध के समय भी दुंदुभि का वादन होता था। विवरण-इस वाद्य का प्रयोग भिन्न-भिन्न रूपों में विमर्श-हिन्दी शब्द सागर में दुंदुभि का अर्थ आज भी समस्त भारत में होता है। इस वाद्य में नगाड़ा और घौंसा किया है। 'द म्यूजिक ऑफ दो ढांचे-एक बड़ा, दूसरा छोटा-एक ही तार से इंडिया' में नगाड़ा और भेरी, भारतीय संगीत वाद्य जुड़े रहते हैं। इसमें लगभग हुडुक की सी ध्वनि पृ ७७ में दुंदुभि को नगाड़ा, दमामा आदि का ही निकलती है, किन्तु हुडुक की रस्सियों को ढीला एक प्रकार तथा संगीत शास्त्र दर्पण में दुंदुभि को और कड़ा करने से स्वर की जो ऊंचाई-नीचाई नगाड़ा का ही पर्यायवाची माना है। जैन टीकाकारों प्राप्त होती है, उससे कहीं अधिक ऊंचाई-नीचाई ने भी इसके भिन्न-भिन्न अर्थ किए हैं। राज. टी. पृ. इस वाद्य में होती है। आधुनिक युग में इसका ४९-५० में इसे भेरी के आकार का तथा भगवती प्रयोग उदयशंकर जैसे नृत्याचार्यों द्वारा तथा अनेक टी. पृ. ४७६ में 'ढक्का' माना है। इसलिए प्रस्तुत फिल्मों में होता दिखाई पड़ता है। इसमें W Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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