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जैन आगम वाद्य कोश बाहर निकला रहता है।
भामरी (भ्रामरी) राज. ७७, ज्ञाता १७/२२ जिस पर एक तार होता है, उसे एकतारा, जिस भ्रामरी वीणा, रुद्र वीणा, शिव वीणा, तंजोरी पर दो तार होते हैं उसे दो तारा कहते हैं। वीणा विमर्श-प्रस्तुत शब्द का उल्लेख केवल जैनागमों आकार-किन्नरी वीणा के सदृश। में प्राप्त होता हैं। राज. टी. पृ. ४९-५० में विवरण-भारतीय संगीत में कुछ वर्षों पूर्व तक "बल्लकी-सामान्यतो वीणा' कहकर इसे सामान्य ___ सर्वाधिक लोकप्रिय स्थान रखने वाली इस वीणा वीणा माना है, इसीलिए सामान्य वीणा का वर्णन
का दंड चौड़े तथा कोमल बांस का बना होता है। किया गया है।
इसके एक छोर के नीचे एक चपटा मेरु होता है।
इसके दंड के नीचे दो बिना कटे तुम्बे विचित्र भंभा (भम्भा) राज. ७७, जीवा. ३/३१, जम्बू.
वीणा की ही भांति लगे होते हैं। सुरों के लिए ३/३१, ज्ञाता. १७/२२
चार मुख्य तंत्रियां होती हैं, जिनके नीचे बांस के
दंड पर मोम से जुड़े सीधे खड़े पतले चार पर्दे भम्भा, ढक्का, ढंका
होते हैं। एक हाथ की अंगुलियां जब तंत्रियों को आकार-ढवस के सदृश।
छेड़ती हैं, दूसरा हाथ पर्दो के ऊपर उन्हें रोकता विवरण-यह वाद्य विजयसार के काठ से बनता है। है। मुख्य तंत्रियों के अतिरिक्त दो सहायक तंत्रियां इसकी लम्बाई एक हाथ तथा परिधि ३९, अंगुल होती हैं तथा दंडों के दूसरी ओर भी एक तंत्री की होती है। इसके दोनों मुख तेरह-तेरह अंगुल के लगी होती है। होते हैं। दोनों मुखों को कड़े चमड़े से लपेटा जाता संगीत पारिजात एवं संगीत सार में रुद्र वीणा के है तथा उसमे सात-सात छेद कर चमड़े से मढ़ छह भेद और बताये गये हैं। इन समस्त भेदों को दिया जाता है। उन छेदों में मोटा डोरा लगाया तार की संख्या के आधार पर प्रतिपादित किया जाता है। इसको बांयीं बगल में दबाकर दाहिने गया हैहाथ से डण्डी द्वारा बजाया जाता है।
१. जिस रुद्र वीणा में दो तार लगे हों, उसे विमर्श-इस वाद्य का नामोल्लेख जैनागमों में
नकुली वीणा कहते हैं। अनेक स्थलों पर हुआ है। राज. टी. पृ. ४९-५०
२. जिस रुद्र वीणा में तीन तार लगे हों, उसे में भंभा को ढक्का का पर्याय माना है जो कि
त्रितंत्री वीणा कहते हैं। अवनन्द्र वाद्य के अन्तर्गत आता है। ज्ञाता. १७/
३. जिस रुद्र वीणा में चार तार लगे हों, उसे २२ में भंभा को वीणा के अन्तर्गत लिया है। बहुत
राजधानी वीणा कहते हैं। संभव है-जिस प्रकार झालरि नाम के दो वाद्य
४. जिस रूद्र वीणा में पांच तार लगे हों. उसे अवनद्ध और घनवाद्य के रूप में प्रचलित थे, उसी प्रकार भंभा भी वीणा के रूप में विकसित हो। विपंची वीणा कहते हैं। किंत भंभा नामक वीणा का वर्णन अप्राप्य होने के ५. जिस रुद्र वीणा में छह तार लगे हों, उसे कारण प्रस्तुत शब्द को अनवद्ध वाद्य के अन्तर्गत सर्वरी वीणा कहते हैं। लिया है।
६. जिस रुद्र वीणा में सात तार लगे हों, उसे
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