Book Title: Jain Agam Vadya Kosh
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 46
________________ जैन आगम वाद्य कोश ३५ जो तीन स्थानों से कटोरीनुमा बनी हो, रणसिंग घर्षण के द्वारा स्वर उभारने वाला वाद्य कहा है। वक्री कहलाती है। PG. 35 (1) इसमें षड्ज, पंचम की ध्वनियां निकलती हैं। इसको प्रचार में रणसिंग, रंगसिंगा कहते हैं। रिंगिसिया (रिंगिसिया, रिंगिसिका) राज. ७७ रिङ्गिसिका, घर्षण वाद्य, रिगाब्रैया। आकार - दांते युक्त बांसुरी सदृश । विवरण- इस वाद्य का निर्माण मुख्यतः बांस की नलिका से होता है। लगभग ५० सेमी. लम्बे बांस के खोखले टुकड़े लेकर, उसकी सतह पर ढेरों आड़े-तिरछे दांते कर दिये जाते हैं। इसकी दीवार में प्रायः एक छोटी सी दरार भी कर दी जाती है, जिससे घर्षण करने वाले यंत्र के द्वारा अधिक गूंज उत्पन्न हो सके। कभी-कभी अधिक गूंज पैदा करने के लिए इसमें एक छोटा तुम्बा भी लगा देते हैं। छड़ी के द्वारा घर्षण करने पर एक प्रकार की ध्वनि पैदा होती है। जम्बू. टी. पृ. १०१ में भी इसे Jain Education International लोक संगीत व कबीलाई संगीत में इसे मुख्य रूप से प्रयोग में लेते हैं। (विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य- भारतीय वाद्य गलु) रिगिसिगी (रिगिसिगी) जम्बू. ३/३१ रिगिसिगी, रापोणि (आसाम) घर्षण वाद्य । आकार - बांस की एक मीटर लम्बी छड़ी । विवरण- यह वाद्य किरिकिट्टक और रिंगिसिका की जाति का वाद्य है। इसे कुछ-कुछ वायलिन की तरह पकड़ा जाता है और उसी हाथ में पकड़ी हुई एक कौड़ी को बांस के दांतों पर तेजी से ऊपरनीचे चलाया जाता हैं, जिसके घर्षण से ध्वनि उत्पन्न होती है। आसाम में इसे रापोनि कहते हैं। कबीलाई व लोक संगीत में इस वाद्य की अनेक किस्में प्रयोग में आती हैं। लत्तिय (लत्तिय) निसि. १७/१३८, राज. ७७, आ. चू. ११/२ लत्तिय, ब्रह्मतालम्, कांस्यवाद्य । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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