Book Title: Jain Agam Vadya Kosh
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 44
________________ जैन आगम वाद्य कोश ३३ महाभेरी (महाभेरी) ठाणं ७/४२ अनु. ३०१ और बंगाल का खोल आदि आकार और संरचना महामेरी में असमानता होते हुए भी मृदंग ही कहे जाते हैं। आकार सामान्य भेरी से बड़ा। दक्षिण में मृदंगम् ही एक ऐसा वाद्य है, जो विवरण-इस वाद्य का निर्माण तांबे से होता था। शास्त्रीय संगीत सभाओं में संगत के लिए प्रयोग इसकी ध्वनि तीव्र एवं गंभीर होती थी। इसे शंख किया जाता है। कर्नाटकीय संगीत में प्रचलित के साथ बजाया जाता था। 'मृदंगम्' अपने आप में अद्भुत है, जिसका वर्णन (विवरण के लिए द्रष्टव्य-भेरी) इस प्रकार है-इस वाद्य यंत्र का खोल लकड़ी का होता है और लगभग ६० सेन्टीमीटर लम्बा होता है। जैसाकि इस संदर्भ में आवश्यक ही है, यह मुइंग (मृदंग) राज. ७७, औप. ६७,६८ ठाणं बीच से फूला होता है और इसका एक मुख दूसरे ७/४२, ८/१०, दसा. १०/१७,१८, प्रज्ञा. २/ से बड़ा होता है। दायां मख बांएं की अपेक्षा क ३०, जम्बू. २/१२ छोटा होता है। मुखों की संरचना भी कुछ भिन्न मृदंग, पखावज होती है। इस वाद्य पर वादन से तुरन्त पहले आटे की लोई मध्य भाग में लगा दी जाती है, इसे वादन के उपरांत हटा दिया जाता है। लकड़ी के टुकड़े और पत्थर से दायें पिन्नल को ठोक बजाकर वाद्य को मिलाया जाता है। जिस वाद्य को उत्तर भारतीय मृदंग अथवा पखावज के नाम से जानते हैं उसी को दक्षिण भारत में मृदंगम् कहते हैं। पखावज का आकार-प्रकार मृदंगम् जैसा ही है, केवल बनावट में थोड़ा अन्तर प्रतीत होता है। जो इस प्रकार है-मृदंगम् के समान यह भी लकड़ी का बना होता है, थोड़ा सा अधिक लम्बा, इसमें झिल्लियां भी कई होती हैं किन्तु उनका व्यास थोड़ा अलग होता है। दक्षिण के वाद्यों की तरह इसके भी दायें मुख पर एक काले मिश्रण का लेप आकार-ढोलक के सदश अवनद्ध वाद्य जिसका किया जाता है, जिसे स्याही कहते हैं। बायीं ओर एक मुख संकीर्ण तथा दूसरा मुख विस्तृत होता इसमें भी मृदंगम् की तरह आटे का लेप लगाया जाता है। आकृति और माप के अतिरिक्त एक जो विवरण-इस वाद्य का वर्णन जैनागमों, बौद्ध पिटकों आम अन्तर है इन दोनों वाद्यों में, वह यह है कि एवं प्राचीन संगीत के ग्रंथों में अनेक स्थलों पर पखावज में एक छोड़कर एक डोरी के नीचे लकड़ी प्राप्त होता है। आज भी मृदंग की अनेक किस्में के गुटके लगे होते हैं जिन्हें सुर के साथ मिलाने अलग-अलग नामों से प्राप्त होती हैं। जैसे-दक्षिण के लिए ऊपर-नीचे किया जा सकता है। भारत का मृदंगम्, हिन्दुस्तानी संगीत का पखावज आधुनिक युग में मृदंग के दक्षिण मुख में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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