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जैन आगम वाद्य कोश
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वीणा (वीणा) निसि. १७/१३७, राज. ७७, अनु. २५०, जीवा.३/२८५, प्रश्न व्या. १०/१४ वीणा
वेणु (वेणु) निसि. १७/१३९, जीवा. ३/५८८, आ. चू. ११/४, भग. २१/१७ वेणु आकार-वंशी सदृश। विवरण यह एक प्राचीन सुषिर वाद्य है। इसका उल्लेख जैनागमों, वेदों एवं उत्तरवर्ती ग्रंथों में प्राप्त होता है। विभिन्न प्रकार वाली वेणु का निर्माण प्रायः बांस की नलिका द्वारा किया जाता है। वेणु की लम्बाई आवश्यकता पर निर्भर करती है
और उसके अनुसार बदलती रहती है। छोटी वेणु तेज गति और ऊंची आवाज के लिए तथा बड़ी, वेणु धीमी गति और नीची आवाज के लिए होती
है।
वेणु पलासिय (वेणु पलासिय) सूय. १/४/३८ मूर्सिंग, भूचंग, मुख-चंग, वेणु पलासिय, मोरचंग।
आकार-विभिन्न आकार वाला तंत्री युक्त वाद्य। विवरण-जैनागमों, वेदों एवं उत्तरवर्ती ग्रंथों में वीणाओं का विशद वर्णन प्राप्त होता है। तंत्री युक्त सभी प्रकार के वाद्यों को वीणा के अन्तर्गत अथवा तत् वाद्यों के अन्तर्गत माना गया। प्राचीन समय में एक तंत्री वीणा से लेकर शत तंत्री वीणा तक का उल्लेख प्राप्त होता है। जैसे-अलाबु वीणा, एकतारा, आलापिनी, चित्रा, विचित्रा, भ्रामरी, किन्नरी, बल्लकी, विपंची-नौ तंत्री युक्त वीणा. महती तथा वाण वीणा-शत तंत्री यक्त वीणा आदि। प्राचीन ऐसे अनेक वीणाएं हैं, जो वर्तमान में प्राप्त नहीं होती जैसे-चित्रा, महती विपंची आदि। संगीत रत्नाकर संगीतसार आदि ग्रंथों में वीणाओं के आकार-प्रकार एवं वादन-विधि का उल्लेख प्राप्त होता है।
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