Book Title: Jain Agam Vadya Kosh
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 49
________________ ३८ जैन आगम वाद्य कोश विचित्तवीणा पा. (विचित्र वीणा पा.) ज्ञाता. १७/ तरह से मिले होने पर मुख्य तारों के साथ बजाते २२ हुए अतिरिक्त झंकार उत्पन्न करते हैं। विचित्र वीणा विचित्र वीणा का वादन अत्यंत कठिन होने के आकार-आधुनिक सितार के सदृश। कारण तथा तानसेन के वंशजों द्वारा रुद्र-वीणा रबाब को अपनाये जाने के कारण मध्ययुग में इसका प्रायः लोप हो गया था, किंतु इन दिनों यह अपने विकसित रूप में फिर प्रचार में आ रही है। यद्यपि अब भी इस वीणा को बजाने वाले देश में इने-गिने लोग ही हैं। सामान्य रूप से यह देखने में ऐसी प्रतीत होती है, मानो रुद्र वीणा से परदें निकाल दिये गये हैं, और सब कुछ वही है। किंतु सूक्ष्म दृष्टि से देखने पर दोनों का अंतर स्पष्ट हो जाता है। Jull विपंचि (विपञ्ची) निसि. १७/१३७, राज. ७७. आ. चू. ११/२ विपञ्ची, नौतंत्री वीणा। आकार-तम्बूरा सदृश। विवरण-चित्रा वीणा की भांति इस वीणा को भी अंगुलियों से बजाया जाता था। वैदिक युग के विवरण-विचित्र वीणा भारतीय संगीतकारों द्वारा पश्चात् जिन तंत्री वाद्यों का विकास हुआ, उनमें बजाया जाने वाला बिना पर्यों का सितार है। विपंची का नाम मुख्य है। महर्षि भरत ने इसको इसका दंड लगभग सवा मीटर लंबा होता है। प्रमुख वीणाओं में माना है। इस वीणा में नौ इसमें दोनों ओर दो बड़े तंबे लगे होते हैं। जैसे तंत्रियां होती थी जिन्हें सात शुद्ध तथा अन्तर कि अन्य समकालीन वीणाओं में होता है, इसमें काकली युक्त स्वरों में मिलाया जाता था। वर्तमान भी दंड के एक ओर विशाल मेरु होता है और में इस नाम की कोई वीणा प्रयोग में नही आती। दूसरी ओर तंत्रियां भी होती हैं जिन्हें चिकारी कहा विमर्श-नान्यदेव ने भरत भाष्य में और सारंगदेव जाता है, जो सुर देने को छेड़ी जाती हैं, मुख्य ने संगीत रत्नाकर में "विपञ्च्यां नवतंत्रीषु" तार भी मिजराब पहनी अंगुलियों से बजाये जाते कहकर विपंची को नौ तंत्री वीणा कहा है। जबकि हैं। राग बजाने के लिए कोच के एक गोले से राज. टी. प्र. में “विपंची त्रितंत्रीवीणा"-विपंची को उन्हें दबाया और छोड़ा जाता है। मुख्य तारों के त्रितंत्रीवीणा माना है। हो सकता है कि आगम नीचे लगभग एक दर्जन या उससे अधिक तार काल में विपंची युक्त वीणा हो, जो बाद में नौ लगे होते हैं जिन्हें तरब कहा जाता है, जो ठीक तंत्री वीणा के रूप में विकसित हो गई हो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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