Book Title: Jain Agam Vadya Kosh
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 40
________________ २९ जैन आगम वाद्य कोश भी कागज यहां तक कि अखबारी कागज और रंग विवरण-इस वाद्य की गणना सामान्य वीणा के परंगे पतले कागज की सुन्दर कतरनें जोड़कर इसे रूप में होती है, जो आकार-प्रकार में एकतंत्री नयनाभिराम रूप दिया जाता है। इससे प्रतिध्वनि वीणा से भिन्न है। यह वाद्य प्रायः घुमक्कड़ साधु, पैदा होती है और इसे एक आकर्षक रूप रंग भी संतों एवं याचकों के हाथ में देखा जाता है, जिस सुलभ हो जाता है। इस बांस की टोकरी को बांस पर वे स्वान्तः सुखाय भजन गाते हैं। इसकी दंड के नीचे मध्य भाग में बांध दिया जाता है। बनावट निम्नोक्त प्रकार की हैबांस दंड के दोनों खुले मुखों पर पेड़ की मुड़ी हुई लगभग छह इंच परिधि का मोटा तथा तीन फुट टहनियां कूच दी जाती हैं। ये टहनियां कुछेक लम्बा बांस का दंड बनाया जाता है, जिसके सेमी. लम्बी होती है। पटुवे की रस्सी से इसके ऊपरी सिरे से दो इंच छोड़कर सामने की ओर दोनों सिरों को जोड़ दिया जाता है। इससे बूम- एक खूटी लगाई जाती है, जिसमें तार फंसा रहता बूम जैसी ध्वनि निकलती है। है। नीचे लगभग २४ इंच व्यास का तम्बा लगाया तमिलनाडु तथा केरल का बिल्लादी वाद्यम्,गुजरात जाता है। यह तुम्बा सितार में शोभा के लिए तथा राजस्थान का रामणहत्था अथवा रामणस्त्र लगने वाले ऊपर के तुम्बे से आकार में कुछ बड़ा बद्धीसग वाद्य की ही प्राचीन किस्में हैं, जिनमें कुछ होता है। इस तुम्बे के मध्य भाग में दोनों ओर से आधुनिकता का पुट दृष्टिगोचर होता है। ऐसा छिद्र बनाते हैं, जिससे उपर्युक्त बांस का दंड (विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-वाद्य यंत्र, तुम्बे के गर्भ में प्रवेश कर अन्तिम छोर से दूसरी भारतीय वाद्य गलु) ओर निकल आएं। तुम्बा में दंड का प्रवेश छिद्र इस नाप से बनाते हैं जिससे वह उसमें मजबूती से चिपक जाए और मजबूत बनाने के लिए दंड बल्लकी (बल्लकी) राज. ७७ और तुम्बे में सरेस आदि चिपकाने वाला मसाला बल्लकी, सामान्य वीणा, (एकतारा) लगाकर उसकी अतिरिक्त जुड़ाई भी कर दी जाती आकार-एक तार वाली सामान्य वीणा। है। तुम्बे का ऊपरी भाग लगभग २१ इंच की गोलाई से काट कर निकाल देते हैं तथा इस स्थान पर पतली की हुई खाल मढ़ देते हैं। प्रायः खाल को पानी में भिगोकर, उसे चारों ओर से खींच कर तुम्बी के ऊपर रखकर फूलदार कीलों से मढ़ देते हैं। इसी खाल के मध्य-क्षेत्र में छोटी सी घोड़ी रखी जाती है, जिसके ऊपर तार रखा जाता है। घोड़ी के पाये ऊपर के तार के दबाव के कारण खाल से चिपके रहते हैं। एकतारा में फौलाद का २ या ३ नम्बर का तार चढ़ाया जाता है जो एक छोर पर खूटी से बंधा होता है तथा दूसरे छोर पर दंड के उस भाग से बंधा होता है जो तुम्बा के गर्भ से होता हुआ लगभग डेढ़ इंच Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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