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जैन आगम वाद्य कोश
संबोधित किया गया है। इसलिए झल्लरी के टीकाकारों ने झल्लरि को चविनद्ध वाद्य के पर्यायवाची नामों में भाण, करचक्र, चक्रवाद्य का अन्तर्गत लिया है। बहुत संभव है कि प्राचीन काल समावेश किया गया है।
में झल्लरि अवनद्ध एवं घनवाद्य दोनों के रूप में (विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-भारतीय संगीत विकसित हो इसलिए इसका घनवाद्य और अवनद्ध वाद्य, संगीत रत्नाकर)
वाद्य के रूप में वर्णन किया गया है। (विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-संगीत सार,
संगीत पारिजात) झल्लरि (झल्लरी) राज. ७७, ठाणं ७/४२, दसा. १०/१७, निसि. १७/७३६
झोडय (झोडय) निसि. १७/१३७ झालर, झालरि, जय घंटा।
झोडय वीणा, एकतंत्रीय वीणा, घोष वीणा, घोषवती वीणा, ब्राह्मी वीणा, घोषक वीणा। आकार-एकतारा सदृश। विवरण यह एक अति प्राचीन वीणा थी, जिसका उल्लेख प्रायः सभी संगीत ग्रंथों में मिलता है। यह वीणा मध्यकाल के आस-पास एक तंत्री वीणा के नाम से प्रसिद्ध हो गई, जिसे प्राचीन काल में झोडय, घोष, घोषक, घोषवती, ब्राह्मी आदि नामों
से जाना जाता था। आकार-चक्राकार थाली, जो पीतल, जस्ते और
एकतारा और एकतंत्री वीणा-दो अलग-अलग वाद्य तांबे के मिश्रण से बनाई जाती है।
हैं। दोनों एक तार वाले होते हुए भी प्रयोग में विवरण-आधुनिक युग में यह वाद्य प्रायः हिन्दू
सर्वथा भिन्न हैं। प्राचीन एकतंत्री का विधिवत् वादन मंदिरों में आरती के समय प्रयोग में लाया जाता होता था, जिससे सभी स्वरों को निकाला जाता है, जिसे जय घंटा कहा जाता है।
था। किन्तु वर्तमान एकतारा केवल एक ही स्वर संगीत रत्नाकर ६/११९०-११९१ के अनुसार- उत्पन्न करता है। जय घंटा कांसे का होता था जो समतल, चिकना
इस वीणा का दंड लम्बाई में लगभग १४० सेमी. तथा गोल होता था। मोटाई आधे अंगुल के बराबर होता था और दंड के नीचे एक तंबा लगाया जाता होती थी। इसके वृत्त के किनारे पर दो छिद्र होते थे था। तुइला की भांति यह वाद्य भी सीने के आसजिनमें डोरी डालकर लटकाने योग्य बना लिया पास रखा जाता था। तांत से बनी तंत्री अथवा जाता था। इसे बाएं हाथ में पकड़कर दाएं हाथ में तार को एक हाथ से खींचा जाता था तथा दूसरे कोई कठोर वस्तु लेकर बजाया जाता था, जिसे हाथ में बांस का एक कोमल टुकड़ा कर्मिका रहता लौकिक भाषा में झालरि, झालर भी कहते थे। इसी था, जिसे तंत्री के ऊपर दबाया और खिसकाया का बृहद् रूप महा घंटा होता था, जो कांसे अथवा जाता था। एक तंत्री पर एक बड़ा मेरु तथा तांत अष्टधातु से निर्मित किया जाता था।
के नीचे बांस का एक मुलायम टुकड़ा होता था, विमर्श-संगीत सार, संगीत रत्नाकर और जैन जो जीवा की तरह काम करता था। संगीत शास्त्र Jain Education International
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