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जैन आगम वाद्य कोश
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जाने के कारण अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर विवरण-आकार व धातु की भिन्नता के आधार पर सकी। चित्रा वीणा के इस रबाब रूप में अठारहवीं इसकी अनगिनत किस्में है। ८ से १६ अंगुल व्यास शताब्दी के उत्तरार्ध में फिर परिवर्तन आना प्रारम्भ वाले धातु की तश्तरीनुमा बनावट को झांझ कहते हुआ जिसके कारण सुरसिंगार तथा सरोद नामक हैं। इनके मध्य में डोरी निकालकर तथा उसपर वाद्य बने। तत वाद्यों में सरोद का वर्तमान में कपड़ा बांधकर हाथ से पकड़ने योग्य कर लेते हैं। महत्त्वपूर्ण स्थान है।
फिर झांझ को आपस में किनारों पर अथवा एक (विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-भारतीय संगीत किनारे से दूसरे की सतह पर अथवा दोनों को वाद्य, भरत नाट्यशास्त्र, संगीत रत्नाकार)
सपाट सतहों पर टकराकर बजाया जाता है। इनमें झनझनाहट भरी ध्वनि उत्पन्न होती है। इसे
मुख्यतया ताशा और बड़े ढोल के साथ बजाते हैं। छब्भामरी (षड्भ्रामरी) राज. ७७, ज्ञाता.१७/२२
शैलानी गायक, मंडलियों, हरिकथा गाने वाले षड्भ्रामरी, मेमेराजन, वक्षवीणा
कलाकारों, भक्ति सभाओं, नर्तकों आदि के साथ आकार-आधुनिक गिटार से मिलता-जुलता वाद्य। यह वाद्य देश के हर भाग में पाया जाता है। विवरण-यह एक प्राचीन वीणा थी। वक्ष वीणा के प्राचीन समय में इसे आघाटी के नाम से जाना नाम से वर्तमान में प्राप्त होने वाली यह वीणा जाता था। षड्भ्रामरी का ही एक परिवर्तित रूप है। यह वाद्य बांस की ग्रीवा पर चार से छह पर्दे लगाकर
झल्लरि (झल्लरी) राज. ७७, ठाणं ७/४२, बनाया जाता है। दूर-दूर लगे दो तारों को इन पर्दो
दसा. १०/१७, ठाणं ४/३४४, १०/४३, अनु. के ऊपर दबाया जाता है। पहला तार सुर
३०१, निसि. १७/७३६, औप. ६७ निकालता है, दूसरा उसका अनुगमन करता है। उसके नीचे दो कटे हुए तुम्बे के पर्दे लगे रहते हैं। झल्लरी, भाण, चक्रवाद्य, करचक्र। इस वाद्य को, तुम्बों के खुले सिरे को अपने शरीर आकार-वलयाकार एवं चमड़े से मढ़ा हुआ की ओर रखकर पकड़ा जाता है। तम्बे को इसके अवनद्ध वाद्य। विपरीत दबाया और छोड़ा जाता है, जिससे ध्वनि विवरण-यह वाद्य १० अंगुल मोटा एवं ४ अंगुल को कम या अधिक किया जा सके। तार बायें हाथ लम्बा होता है। इसका बीच आर-पार से पोला से रोके और दांये हाथ से छोड़े जाते हैं। इस वाद्य होता है। एक अंगुल के दल वाले इस वाद्य के को मेमेराजन भी कहा जाता है।
एक मुख को चमड़े से मढ़ा जाता है। बजाते समय चमड़े को पानी से भिगो कर बाएं हाथ से उसका
किनारा दबाकर दाहिने हाथ से बजाया जाता है। झंझा (झञ्झा) राज. ७७
विमर्श-संगीत रत्नाकर वाद्याध्याय श्लोक(११३९) झांझ
में झल्लरी के साथ-साथ इसका एक छोटा रूप आकार-दो बड़े चक्राकार चपटे टुकड़े जिनके मध्य भाण के नाम से प्रचलित था, ऐसा उल्लेख भाग में छोटा सा गड्ढा होता है, जो देखने में
दखन म मिलता है। इसी झल्लरी और भाण को ही संगीत
तो तश्तरी सदृश लगते हैं।
पारिजात में चक्रवाद्य अथवा करचक्र के नाम से
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