Book Title: Jain Agam Vadya Kosh
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 16
________________ जैन आगम वाद्य कोश ढांचा होता है और यह एक खाल से मढ़ा होता है। यह खाल इतनी खिंची रहती है कि इसको बजाते समय इसे ढ़ीला करने के लिए गीले कपड़े से पोंछते रहना पड़ता है। वाद्य को अंगुली और हथेली का प्रयोग कर बजाया जाता है। खंजरी और ढक में केवल व्यास का ही अंतर उल्लेखनीय नहीं है। खास अंतर यह है की खंजरी में पीतल की छोटी-छोटी झांझ की जोड़ियां ढीली लगी होती हैं जो बजाने पर मधर झंकार विवरण-दक्षिण भारत में शास्त्रीय संगीत सभाओं उत्पन्न करती हैं। में प्रयुक्त होने वाला यह वाद्य अपनी अलग ही उपरोक्त खंजरी से छोटी बिना झांझ की खंजरी । पहचान रखता है। भी होती है जो लगभग वालिस्त भर का फासला स्त भर का फासला काष्ठ से निर्मित इस वाद्य का आकार कुछ छोटा रखकर हाथ में पकड़ी जाती है और दसरे के द्वारा और झिल्ली की पर्ते लगभग उसी नाप की होती बजायी जाती है। हैं। झिल्ली छल्लों पर चढ़ी होती है, जो चमड़े की डोरियों से एक दूसरे से जुड़े रहते हैं। वादक खंजरी भेड़, बकरी, बैल या भैंसे की खाल से एक ओर लकड़ी से दूसरी ओर अंगुलियों से बनती है लेकिन कंजीरा और छोटी खंजरी एक बजाता है। इसे इतनी ताकत से बजाया जाता है किस्म की छिपकली की खाल से बनती है। चूंकि कि अंगुलियों की रक्षा और आवाज का वांछित चमड़ा वाद्य को बनाने के दौरान ही ढांचे पर कस असर पैदा करने के लिए अंगुलियों के पोरों पर कर मढ़ दिया जाता है और मिलाने की गुंजाइश गोल पट्टियां बांध ली जाती है। नहीं होती इसलिए यह वाद्य बारीक संगीत के लोक भाषा में इसे कणक, तविल के नाम से जाना उपयुक्त नहीं होता। जाता है। मृदंगम् के समान पीपे के आकार का यह राजस्थान में कालबेलिया और जोगियों की होने के कारण इसे हरीतिकी वाद्य भी कहते है। मंडली द्वारा बजाया जाता है। महाराष्ट्र में इसे दिमड़ी, उत्तर भारत में खंजरी, दक्षिण भारत में कंजीरा, गंजीरा और कश्मीर में कडंब के नाम से कणित (क्वणित) जीवा. ३/५८८ जाना जाता है। पावा, वंश-पावा, क्वणिता। (विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-वाद्य यंत्र) आकार-बांसुरी के सदृश। विवरण-यह वाद्य नाथेन्द्र वंशी का एक भेद है। इसका बांस नौ अंगुल का होता है। इसके मुख कणक (कनक) प्रश्नव्या. ४/४ पर बांस की पत्ती लपेट कर लोक-रीति से इसका कणक, तविल (दक्षिण), हरीतिकी। वादन किया जाता है। इसे वंश-पावा भी कहते हैं। आकार-मृदंग के सदृश। (विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-संगीत रत्नाकर) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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