Book Title: Jain Agam Vadya Kosh
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 15
________________ ४ स्वीकार किया गया है। (विशेष जानकारी के लिए द्रष्टव्य-भारतीय संगीत वाद्य, वाद्य यंत्र) कच्छभी (कच्छपी) निसि. १७/१३८ कच्छपी। आकार-ताल सदृश विवरण - यह वाद्य प्राचीन ताल वाद्य से आकार में कुछ छोटा होता है। कांसा, पीतल, फूल तथा अष्ट धातु का बनता हैं जिसका व्यास लगभग चार अंगुल होता है। इसका मध्य क्षेत्र भी स्तनाकार होता है जहां एक छिद्र होता है जिसमें सूतली पिरोयी रहती है। उसको अंगुलियों में लपेट कर इसका वादन करते हैं। वर्तमान समय में विवाहादिक मांगलिक अवसरों पर ढोलक के साथ गान करती हुई ग्रामीण महिलाएं इसका वादन करती हैं। विमर्श - निसि. १७/१३८ में कच्छपी को घन वाद्य के अन्तर्गत लिया है। निसि चू. द्वि. ६१ अ में "चतुरंगुली दीहो वा वृत्ताकृति" कहकर इसको चार अंगुल व्यास वाला अथवा चार अंगुल बड़ा वृत्ताकृति वाद्य कहा है, जो उपरोक्त वाद्य विवरण के सदृश है। संभवतया ताल वाद्य के सदृश होने के कारण प्राचीन ग्रन्थकारों ने इसका अलग से उल्लेख करना आवश्यक नहीं समझा। (विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-भारतीय संगीत वाद्य) कच्छभी (कच्छपी) राज. ७७, जीवा. ३/५८८, जम्बू. ३/३१ कच्छपी सितार, सरस्वती वीणा आकार - उत्तर भारतीय वीणाओं के सदृश । Jain Education International SUDSK जैन आगम वाद्य कोश विवरण - यह वाद्य वीणा का ही एक परिवर्तित रूप है, जिसके नीचे एक चपटा तुम्बा लगा रहता है। तुम्बा ग्रीवा के एक ओर चिपका होता है और इसका ऊपरी भाग काष्ठफलक से ढका होता है, जो चपटा या थोड़ा सा फुला हुआ होता है। ग्रीवा से एक लम्बी दंड जुड़ी होती है, जिसे दंडी कहा जाता है। इसके ऊपर पीतल के उत्तल पर्दे लगे होते हैं, जिन्हें वांछित स्थान तक खिसकाया जा सकता I चपटा तुम्बा होने के कारण इस वाद्य को कछुवा सितार, कच्छपी सितार भी कहते हैं। (विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य वाद्य यंत्र) कडंब, करंब पा. (कडंब, करम्ब पा.) राज. ७७ गंजीरा, खंजरी, कंजीरा (दक्षिण), कडंब (कश्मीर) दिमड़ी (महाराष्ट्र) आकार - ढफ से छोटा । For Private & Personal Use Only विवरण- इस वाद्य में लगभग ३० सेन्टीमीटर व्यास का लकड़ी, पीतल या लोहे का बना एक th www.jainelibrary.org.

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