Book Title: Jain Agam Vadya Kosh
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 17
________________ जैन आगम वाद्य कोश करड़ (करट) जीवा. ३/५८८ राज. ७७ विवरण-विभिन्न आकृतियों व किस्मों में विकसित करटा, करट, करटी। यह वाद्य प्रायः सभी प्रान्तों में पाया जाता है। इसे आकार-ढोल के समान प्रतीत होने वाला। लोक संगीत में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इसका निर्माण खेर की लकड़ी या ठोस बांस के टुकड़ों से विवरण-यह वाद्य विजयसार की काष्ठ द्वारा होता है। चार भागों में विभक्त यह वाद्य लगभग बनाया जाता है। जिसका पिण्ड २४ या २१ अंगुल दो अंगुल चौड़ा व बारह अंगुल लम्बा होता है। का होता है। इसकी परिधि ४० अंगुल की होती है। दोनों मुखों पर चढ़ाव की रीति से तीन-तीन इसका एक भाग अंगूठा तथा तर्जनी के मध्य तथा तांत के तार बांधे जाते हैं तथा दोनों मखों पर दूसरा तर्जनी और मध्यमा के बीच इस प्रकार काठ या लोहे के कड़े लगाकर उन्हें कोमल चमड़े दबाया जाता है जिससे दोनों भागों के भीतरी से लपेट दिया जाता है। उन कड़ों में १४-१४ छेद किनारे आसानी से एक-दूसरे का स्पर्श कर सकें। करके फिर करटा के दोनों मुख ढोल की भांति मढ़ इसी प्रकार दोनों हाथों में चारों हिस्सों को पकड़ दिये जाते हैं। उन १४ छेदों में बीच-बीच के छेदों कर मणिबंध को हिलाते हुए वादन किया जाता है। इसके वादन से किट-किट की ध्वनि निकलती है। को छोड़कर उसे कसने के लिए लिए चमड़े की बन्द्री लगाई जाती है। उसके खाली छिद्रों में फिर आजकल इसे धातु का भी बनाते हैं। बंगाल में पतले चमड़े की बद्री पहले की ही भांति लगाई इसका अधिक प्रचार देखने को मिलता है। जाती है, जिससे बद्धियां चढ़ाव-उतार युक्त हो ___ आधुनिक युग में प्रचलित करधान बीच में दो जाती हैं। इसके दोनों कड़ों के पास से एक तीन अंगुल विस्तार के होते हैं तथा दोनों अग्रभागों तक अंगुल चौड़ी चमड़े की पट्टी बांधी जाती है जिसे क्रमशः पतले तथा नुकीले हो जाते हैं। गले में लटका कर अथवा कमर से बांधकर बेंत (विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-संगीत सार) की डण्डी से, जो अग्र भाग से मुड़ी हुई, लगभग एक हाथ की होती है, हाथ में पकड़ कर वादन कलताल (करताल, तलताल पा.) जम्बू. ३/३१ क्रिया करते हैं। करताल, खड़ताल, कठताल, राम गिड़गिड़ी, (विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-भारतीय संगीत शिटशिटी तत्त गिड़गिड़ी (वज्र) वाद्य) आकार-लगभग पांच इंच से दस इंच लम्बे एवं लगभग दो इंच चौड़े दो चतुर्भुज आकार के करटि, करड़ी (करटी) जीवा. ३/५८८ लकड़ी के टुकड़े जिनमें झनझनाहट करने वाले करटा, करट करटी। लटकन लगे होता हैं। (विशेष विवरण के लिए द्रष्टव्य-करड़) विवरण-करताल एक घन वाद्य है, जिसमें खंजरी के समान पीपल की दो छोटी झांझों के दो स्थानों पर एक-एक जोड़ी लगी रहती है। यह चार टुकड़ों करधाण (करध्मान) जम्बू. ३/३१ में होती है जिसमें दो टुकड़े दोनों हाथों के अंगूठों कम्रा, कम्रिका, कम्राट, करधान, काष्ठताल। में तथा दो दोनों हाथों की उंगलियों में पहनकर आकार-कठताल के सदृश। बजाते हैं। इसी उद्देश्य से दो टुकड़ों के मध्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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