Book Title: Jagadguru Heersurishwarji
Author(s): Punyavijay
Publisher: Labdhi Bhuvan Jain Sahitya Sadan

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Page 5
________________ : लेखक का वक्तव्य : इस साल पू. गुरुदेव मद्रास चतुर्मास बोराजीत है। तब भा. सु. ११ के दिन मुगलसम्राट अकबर प्रतिबोधक स्व. पूज्यपाद आचार्यदेवश्री हीरसूरीश्वरजी महाराज की ३७५वीं पुण्यतिथि पूज्यश्री के निश्रामें ठाठ से मनाई गई थी। स्व. महापुरुषके निरतिचार चारित्रपालन, अजोड प्रभावक प्रवचन शक्ति, शासन सेवा-प्रभावना को भारी तमन्ना, निःस्पृहता, तपोनिधि आदि कई गुण-मौक्तिकों की श्रेणीको सुनकर संघ अत्यंत हर्षान्वित होकर कहने लगा, पू. होरसूरिजी महाराजका जीवन इतना प्रभावक है। तो छोटे-छोटे बच्चे आदि उन महात्मा की जीवनी पढकर अपने 'जीवन-उपवनको गुणपुष्पोंसे' नंदनवन सम बनावें तो कितना अच्छा लाभ मिले? आपश्री कृपाकर उनके बारेमें छोटीसी पुस्तिका प्रकाशित करें। पू. गुरुदेवनें भावीकों की विनंति को मानकर, मेरे पर अनुग्रह करके वह कार्य करने को कहा, तब मैंने 'सूरीश्वर और सम्राट' ग्रंथ सामने रखकर अल्पमति अनुसार वह ग्रंथ लिखकर विद्वद्जन समक्ष एक मूर्ख मनुष्य बालीश चेष्टा करें ऐसी क्रिया की है, सो मेरे इस कार्यको सुज्ञजन खीरनीर न्याय से सार ग्रहण करें। और दोषका मुजे ब्यान करावे ऐसी नम्र प्रार्थना कर मेरी कलम को आराम देता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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