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भूमिका
- प्रारम्भिक इतिहास-भाषा मनोभावों का प्रकाश करने के लिए एक ईश्वरदत्त साधन है। इसके दो भेद हैं-गद्य और पद्य । साहित्य के इतिहास पर एक दृष्टि डालने में स्पष्ट मालूम होता है कि साहित्य में पहले पद्यात्मक भाषा का ही जन्म हुआ। प्रारम्भ में जन समुदाय की वोलचाल में चाहे गद्य का कोई स्वरूप रहा हो; पर जिसको ''साहित्य" नाम से हम जानते है, वह पद्य में ही रचा गया । इसका मुख्य कारण हमको यही जान पड़ता है
कि मनुष्य स्वभाव से ही संगीत, सौन्दर्य और मनोरंजनप्रिय है; और साहित्य • का उद्देश्य जनसमुदाय को मनोरंजन के साथ उपदेश देना है, इसलिए गद्य __ की अपेक्षा पद्य इसके लिए विशेष उपयोगी समझा गया। लोगों का
ऐसा ख्याल है कि प्रारम्भिक काल में मनुष्य में चिन्तना शक्ति का अभाव ' " था, और वह अर्धसभ्य य असभ्य अवस्था में था। इसलिए प्रत्येक बात ,
को यह पद्यात्मक भाषा में ही सुविधा से ग्रहण कर सकता था। इसी कारण पद्य की सृष्टि पहले हुई । पर यह विचार भ्रमात्मक है। गद्यकाल में ही चिन्तनाशक्ति और सभ्यता विशेष विकसित होती है, पद्यकाल में नहीं- ऐसी .. बात नहीं है। कौन कह सकता है कि वैदिक छन्दों के रचयिता सभ्यता
और चिन्तनाशक्ति में निर्बल थे, अथवा जिन लोगों के लिए उन्होंने सामवेद ___ की रचना की उनमें चिन्तनाशक्ति या सभ्यता न्यून थो ? वास्तव में चिन्तना , शक्ति अथवा सभ्यता गद्य अथवा पद्य साहित्य की रचना पर निर्भर नहीं है, • बल्कि साहित्य के गम्भीर और उथले भावों पर ही इनकी न्यूनाधिकता का विचार रखा जा सकता है।
. स्वतत्र साहित्य-रचयिता अपनी-अपनी रुचि और मनोभावों के अनुसार साहित्य की सृष्टि करते हैं; जनता भी अपनी-अपनी - रचि और मनोभावों के अनुसार उस साहित्य का उपयोग करती है । चिन्तनशील मनुष्य गम्भीर साहित्य