Book Title: Harsh Hriday Darpanasya Dwitiya Bhag
Author(s): Kesharmuni Gani
Publisher: Buddhisagarmuni

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ जोइए एवा आग्रह थी जे संघमां भेद पाड़छे ते साधु नहीं ॥४१॥ इस लेख में “संघमां भेद पाड़े छे ते साधु नहीं" यह आक्षेप लेख जो लिखा है सो उचित है या अनुचित ? [उत्तर] हर्षमुनिजी ने श्रीमोहनचरित्र में यह उपर्युक्त आक्षेप लेख बहुत ही अनुचित छपवाया है क्योंकि श्रीगुरु महाराज की आज्ञा थी इसीलिये शास्त्रसंमत स्वगच्छ समाचारी करने में गुरु और शिष्य प्रशिष्यों को किंचित् भी दोषापत्ति नहीं आ सकती है, किंतु शास्त्रसंमत गुरु महाराज की आज्ञा जो नहीं माने वही दोष का भागी होता है। [प्रश्न हर्षमुनिजी ने प्रथम पायचंदगच्छ में श्रीभाईचंदजी के पास दीक्षा ग्रहण की थी कितनेक दिनों के बाद उस गच्छ को और उन गुरू को त्याग कर विशेष सत्कार के लिये श्रीमोहनलाल जी महाराज के शिष्य बन कर खरतरगच्छ में हर्षमुनि जी आए और कितनेक दिन खरतरगच्छ की समानारी की थी तथापि हर्षमुनिजी ने श्रीमोहनचरित्र के उक्त पृष्ठ में छपवाया है किएतस्य च परिहाणे ग्रहणे चैतस्य भाविनी पूजा । इतिबुद्ध्यागच्छांतर, मंगीकुरुते स नो साधुः ॥४२॥ अर्थ-आगच्छनो हूँ त्याग करूँ अने बीजा गच्छनो स्वीकार करूँ तो मारो सत्कार सारो थशे एम धारी जे बीजा गच्छमां जागळे ते साधु नहिं ॥ ४२ ॥ यह लेख उचित छपवाया है कि अनुचित ? उत्तर] हमारी समझ मूजिव तो हर्षमुनिजी ने यह उक्त लेख भी बहुत ही अनुचित छपवाया है तथापि हर्षमुनि जी को पूछना चाहिये कि आप पायचंदगच्छ को त्याग कर खरतरगच्छ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87