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( ५७ ) वाले लौकिक टिप्पने के अनुसार ५० वें दिन दूसरे श्रावणसुदी ४ को वा प्रथमभाद्रपद सुदी ४ को ५० दिने पर्युषण करने युक्त हैं, ऐसा वृद्ध पूर्वाचार्यों का कथन है । अर्थात् ८० दिने वा दूसरे भाद्रपद अधिकमास में सुदी ४ को ८० दिने पर्युषण करने युक्त नहीं हैं। ____ महाशय वल्लभविजयजी ! आपके उक्त उपाध्यायों ने लिखा है कि
सर्वाणि शुभकार्याणि अभिवदिते मासे नपुं. सक इति कृत्वा ज्योतिःशास्त्रे निषिद्धानि । ___ याने सब शुभकार्य बढ़े हुए दूसरे अधिकमास को नपुंसक मानकर ज्योतिषशास्त्र में निषेध किये हैं तो गुजराती प्रथमभाद्र वदी १२ से पर्युषण प्रारम्भ करके दूसरा भाद्रपद अधिक नपुंसक मास में ८० दिने सिद्धांत-विरुद्ध पर्युषण आप लोग क्यों करते हो ? ज्योतिषशास्त्र में लिखा है किवर्षासु शुभकार्याणि नाऽन्यान्यपि समाचरेत् । गृहीणां मुख्यकार्यस्य, विवाहस्य तु का कथा ॥१॥
अर्थ-वर्षा चतुर्मासी में अन्य भी शुभकार्य आचरण नहीं करें इत्यादि । तो वर्षा चतुर्मासी में आप लोग पर्युषण के शुभकार्य आचरण करोगे या नहीं ? याद रखना कि शास्त्रों में ८० दिने पर्युषण करने निषेध किये हैं, मुहूर्त विना ही आषाढ़ चतुमौसी से ५० दिने पर्युषणादि धर्मकृत्य अधिक मास में या वर्षा चतुर्मासी में करने ज्योतिषशास्त्र में निषेध नहीं किये हैं, किंत अच्छे मुहूर्त में करने योग्य गृहस्थ के विवाह आदि कार्य अधिक
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