Book Title: Harsh Hriday Darpanasya Dwitiya Bhag
Author(s): Kesharmuni Gani
Publisher: Buddhisagarmuni

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Page 68
________________ (६१) और अप्रमाण मानना, यह तपगच्छ वालों का मंतव्य उपर्युक्त सिद्धांतपाठ से विरुद्ध है । और श्रीहरिभद्रसूरिजी महाराज के वचन पर कौन भव्य श्रद्धावान् नहीं मेगा ? देखिये उन महापुरुष के युक्त वचनों कोतिहिवुढ्ढीए पुव्वा, गहिया पड़िपुन्न भोग संजुता । इयरावि माणणिज्जा, परं थोवत्ति तत्तुल्ला ॥ १॥ __ अर्थ-तिथि की वृद्धि जैसे दो चतुर्दशी होने से प्रथम (पहिली) तिथि सूर्योदययुक्त ६० घड़ी की सम्पूर्ण भोगवाली ग्रहण करना संयुक्त है, याने उपवास, व्रत, ब्रह्मचर्य, प्रतिक्रमणादि धर्मकृत्यों से मानना प्रमाण है अर्थात विराधना युक्त नहीं। और दूसरी तिथि भी मान्य है, याने नाम सदृश किंचित् होती है। जैसे घड़ी आध घड़ी वा दो चार पल की किंचित् दूसरी चतुर्दशी और विशेष अमावास्या या पूर्णिमा होती है । वास्ते उसमें भी नीलोत्तरी कुशीलादि का त्याग करे और सूर्योदययुक्त संपूर्ण तिथि नहीं मिले तो सूर्योदययुक्त अल्पतिथि भी मान्य होती है । तत्संबंधी पाठ । यथा अह जइ कहवि न लम्भंति, ताश्रो सूरुग्गमेण जुत्ताअो । ता अवरविद्ध अवरावि, हुज्ज न हु पुव्वतिहिविद्धा ॥ १ ॥ __ अर्थ-अथ यदि किसी तरह भी ( तानो ) वह संपूर्ण तिथियाँ नहीं मिले तो सूर्योदय करके युक्त (ता) वह (अवर विद्ध अवरावि हुन्ज ) याने दूसरी तिथि में विद्धाणी हुई पूर्व तिथि भी मान्य होती है, जैसे कि सूर्योदय में चतुर्दशी है। बाद अमावास्या या पूर्णिमा हो तो दूसरी तिथि अमावास्या या पूर्णिमा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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