Book Title: Harsh Hriday Darpanasya Dwitiya Bhag
Author(s): Kesharmuni Gani
Publisher: Buddhisagarmuni

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Page 85
________________ ( ७८ ) अर्थ—सारा अंत:करणवाला श्रीहर्षमुनिजी धर्मथी डरीने सूत्रप्रमाणे यथार्थ अने परिमित बोलेछे अने कोईरीते अमने गमे तेम समज्जावी उड़ावता नथी । [प्रश्न] सूत्र तथा शास्त्र के बड़े जानकार इसी लिये उपर्युक्त प्रशंसा के योग्य हर्षमुनिजी ने श्रीकल्पसूत्रादि शास्त्रविरुद्ध ८० दिने वा दूसरे भाद्रपद अधिक मास में ८० दिने पर्युषण आदि तपगच्छ की समाचारी करने के आग्रह से शास्त्रसंमत ५० दिन पर्युषण आदि खरतरगच्छ की समाचारी करने के लिये गुरु महाराज श्रीमोहनलालजी की आज्ञा का भंग क्यों किया ? और उक्त गुरु महाराज की आज्ञा से तथा उपर्युक्त शास्त्रपाठों से संमत ५० दिने पर्युषण आदि खरतरगच्छ की समाचारी पन्यास श्रीयशोमुनिजी आदि ने अंगीकार की, इस भेद के प्रसंग से कुटिलता पूर्वक हर्षमुनि ने श्रीमोहनचरित्र में छपवाया कि “भेदपाड़े ते साधु नहीं इत्यादि" तथा गुरु के अंत समय में विहार करे तो समुद्र कोठे डूबने जैसा है, गुरुसेवा निष्फल, तीर्थयात्रादि का लाभ नहीं इत्यादि शास्त्रविरुद्ध उत्सूत्र भाव के लेख बालजीवों को भरमाने के लिये क्यों छपवाये हैं ? [उत्तर ] प्रियपाठकगण ! गुरु आज्ञा लोपी हर्षमुनिजी के लिखवाये हुए उपर्युक्त लेखों का यही अभिप्राय ज्ञात होता है कि हर्षमनिजी को अपनी प्रशंसा और दूसरों की निंदा लोकों को दिखलानी थी, इसी लिये शास्त्रज्ञानशून्यता से दूसरों की व्यर्थ - केदा के उक्त आक्षेप लेख शास्त्रविरुद्ध अनुचित छपवाये हैं। और श्री मुनिोहन उत्तरार्द्र चरित्र के प्रत्येक स्थानों में अपनी अत्यंत श्लाघा में..शाशंसा) लिखा कर चरित्र की पूर्णता की है। अब आगे हर्षमुनिजी श्रीमोहनीदे शास्त्रविरुद्ध उत्सूत्रभाव के निदित लेखों से किस प्रकार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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